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प्रमेयबोधिनी टीका पद ४ सू०१ नैरयिकाणां स्थितिनिरूपणम्
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प्रभा पृथिवी के नारकों की (भंते) भगवन् ! (केवइयं कालं) कितने काल तक (ठिई पण्णत्ता) स्थिति कही है ? (गोयमा) हे गौतम ! ( जहपण सागरोवमं अतोमुहुत्तूर्णं) जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम एक सागरो पम की (उक्कोसेणं तिनि सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई) उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम तीन सागरोपम की ।
(वालुयप्पभा पुढवीनेरइयाणं) वालुकाप्रभा पृथ्वी के नारकों की (भते) हे भगवन् ! (केवइयं कालं) कितने काल तक (ठिई पण्णत्ता) स्थिति कही है ? (गोयमा) हे गौतम ! ( जहणेणं तिन्नि सागरोवमाई ) जघन्य तीन सागरोपम (उक्कोसेण सत्त सागरोवमाइ ) उत्कृष्ट सात सागरोपम (अपज्जन्त य वालुयप्पभा पुढवीनेरइयाणं) अपर्याप्त वालुकाप्रभा पृथ्वी के नारकों की (भते) हे भगवन ! (केवइयं कालं ) कितने काल तक (टिई पण्णत्ता) स्थिति कही है ? (गोयमा !) हे गौतम ( जहणेणं अंतोमुहुत्तं जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त (उक्को सेणं वि अंतोमुहुत्त ) उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त (पजत्तय बालुयप्पभा पुढविनेरइयाणं) पर्याप्त वालुकाप्रभा पृथ्वी के नारकों की (भंते) भगवन् ! (केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता) कितने काल तक स्थिति कही है ? (गोयमा) गौतम ! ( जहन्नेणं तिनि सागरोवमाई ) जघन्य तीन सागरोपम (अंतोमुहुत्तूणाई)
(पज्जत्तय सक्करपभा पुढवी नेरइयाणं) पर्याप्त शर्करायला पृथ्वीना नारोनी (भंते ) लगवन् ! (केवइथं कालं) डेटला आण सुधी (ठिई पण्णत्ता) स्थितिउही छे ? (गोयमा !) हे गौतम! (जहणेणं सागरोवमं अंतो मुहुत्तणं) ४धन्य अंतर्मुहूर्त भोछा भे४ सागशेपभनी (उक्कोसेणं तिन्नि सागरोवमाई अंतोमुहुतणाई) उत्सृष्ट अंतर्मुहूर्त सोछा त्र सागरोषभनी छे
( वालुयपभा पुढवी नेरइयाणं) वासुप्रला पृथ्वीना नारनी (अंते) डे भगवन् (केवइथं कालं) डेटा समय सुधी (ठिई पण्णत्ता) स्थिति अड्डी छे ? (गोयमा) हे गौतम! (जहणेणं तिन्नि सागरोवमाई ) ४धन्य त्रयु सागरोपम (उक्कोसेण सत्त सागरोवमाई) उत्कृष्ट सात सागरागम ( अपज्जतय वालुयप्पभा पुढवी नेरइयाणं) अपर्याप्त वायुअला पृथ्वीना नारअनी (भंते!) लगवन् ! (केवइयं काल ) डेटला क्षण सुधी (ठिई पण्णत्ता) स्थिति उही छे ? ( गोयमा) हे गौतम! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं धन्य अन्तर्मुहूर्त (उकोसेण वि अंतोमुहुत्तं) उत्कृष्टथी पशु अन्तर्मुहूर्त (पजत्तय वालुयप्पभा पुढवि नेरइयाणं) पर्याप्त वालुअयला पृथ्वीना नारोनी (भंते ! ) लगवन् ! (केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ) डेंटला अण सुधी स्थिति उड्डी छे ? (गोयमा) हे गौतम ! ( जहण्णेणं तिन्नि
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨