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________________ प्रज्ञापनासूत्रे पश्चिमोत्तरेण, दक्षिणेन असंख्येयगुणाः, दिगनुपातेन सर्वस्तोकाः रत्नप्रभापृथिवी नैरयिकाः पौरस्त्य पश्चिमोत्तरेण, दक्षिणेन असंख्येयगुणाः, दिगनुपातेन सर्वस्तीका शर्कराप्रभापृथिवीनैरयिकाः पौरस्त्यपश्चिमोत्तरेण, दक्षिणेन असंख्येयगुणाः, दिगनुपातेन सर्वस्तोका वालुकाप्रभा पृथिवीनैरयिका पौरस्त्यपश्चिमोत्तरेण, दक्षिणेन असंख्येयगुणाः, दिगनुपातेन सर्वस्तोकाः पङ्कप्रभापृथिवीनैर (दिसाणुयाएणं सव्वत्थोवा नेरइया) दिशाओं की अपेक्षा सब से कम नैरयिक (पुरच्छिम पच्चत्थिम उत्तरेणं) पूर्व, पश्चिम और उत्तर में हैं (दाहिणेणं असंखेजगुणा) दक्षिण में असंख्यात गुणा (दिसाणुवाएणं सव्यत्थोवा रयणप्पमा पुढवीनेरइया) दिशाओं की अपेक्षा सब से कम रत्नप्रभा पृथिवी के नारक (पुरच्छिम पच्चत्थिम उत्तरेणं) पूर्व पश्चिम उत्तर में हैं (दाहिणेणं असंखेजगुणा) दक्षिण में असंख्यात गुणित हैं (दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा सकरप्पभा पुढवीनेरइया) दिशाओं की अपेक्षा सब से कम शर्कराप्रभा पृथ्वी के नेरयिक (पुरच्छिम पच्चत्थिम उत्तरेणं) पूर्व, पश्चिम, उत्तर में हैं (दाहिणेणं असं. खेनगुणा) दक्षिण में असंख्यात गुणा हैं । (दिसाणुवाएणं सव्वत्थोया चालुयप्पमा पुढवीनेरइया) दिशाओं की अपेक्षा सब से कम वालुकाप्रभा के नैरयिक (पुरच्छिम पच्चस्थिम उत्तरेणं) पूर्व पश्चिम उत्तर में हैं (दाहिणणं असंखेजगुणा) दक्षिण में असंख्यात गुणा हैं (दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा पंकप्पभा पुढवीनेरइया) दिशाओं की अपेक्षा सब (दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा नेरइया) हियोनी अपेक्षा माथी छ। नै४ि (पुरच्छिमपच्छिमउत्तरेणं) पूर्व पश्चिम भने उत्तरमा छे (दाहिणेणं असंखेज्जगुणा) दक्षिणमा मसच्यात गु(दिसाणुवाएणं सव्वत्थोया रयणप्पभा पुढवी नेरइया) हिशासानी अपेक्षा माथी माछ। २त्नमा पृथ्वीना न॥२४ (पुरच्छिमपच्चत्थिम उत्तरेणं) यू, पश्चिम मने उत्तरमा छ (दाहिणेणं असंखेज्जगुणा) क्षिामा २५सयात म छ (दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा सक्करप्पभा पुढवी नेरइया) हिशामानी अपेक्षाये माथी सोछ। २४२प्रसा पृथ्वीना नै२:५४ (पुरच्छिम पच्चत्थिम उत्तरेणं) पूर्व, पश्चिम मने उत्तरमा छ (दाहिणणं असंखेज्ज गुणा) दक्षिणमा मसभ्यात छ (दिसाणुबाएणं सब्यस्थोवा वालुयप्पभा पुढवी नेरइया) हिशामोनी अपेक्षा माथी माछा पाय प्रमाना नै२थि: (पुरच्छिम पच्चत्थिम उत्तरेणं) पूर्व, पश्चिम, उत्तरमा छ (दाहिणेणं असंखेज्जगुणा) दक्षिणमा मयात! छे (दिसाणुवाएणं सव्यस्थो. वा पंकप्पभा पुढवी नेरइया) हिशासानी अपेक्षा अधाथी माछ। ५४प्रमा શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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