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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३ सू.९ सूक्ष्मबादरपृथिवीकायिकाद्यल्पबहुत्वम् १७३ सर्वस्तोकाः बादराप्कायिकाः पर्याप्तकाः, बादराप्कायिका अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, सूक्ष्माप्कायिकाः अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, सूक्ष्माप्कायिकाः पर्याप्तकाः संख्येयगुणाः, एतेषां खलु भदन्त ! सूक्ष्मतेजःकायिकानां, बादर तेजाकायिकानाम् च पर्याप्तापर्याप्तकानां कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा, वहुका वा, तुल्या बा, विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोकाः बादर तेजाकायिकाः पर्याप्तकाः. बादर तेजाकायिकाः अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः सूक्ष्म तेजःकायिकाः अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, सूक्ष्मतेजाकायिकाः पर्याप्तकाः संख्येयगुणाः, वा ?) अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (सव्वत्थोवा बायर आउकाइया पज्जत्तया) सब से कम बादर अप्कायिक पर्याप्त हैं (बायर आउकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) बादर अप्कायिक अपर्याप्त असंख्यातगुणा हैं (सुहम आउकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) सूक्ष्म अप्कायिक अपर्याप्त असंख्यात गुणा हैं (सुहम आउकाइया पज्जत्तया संखेज्जगुणा) सूक्ष्म अप्कायिक पर्याप्त संख्यात गुणा हैं। _(एएसि णं भंते !) हे भगवन् ! इन (सुहम तेउकाइयाणं) सूक्ष्म तेजस्कायिकों (बायर तेउकाइयाण य) और बाद तेजस्कायिक (पज्जत्तापज्जत्ताणं) पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों में (कपरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) अल्प बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (सव्वत्थोया) सब से कम (बायर तेउकाइया पज्जत्तया) बादर तेजस्कायिक पर्याप्त हैं (बायर तेउकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) बादर तेजस्कायिक __(गोयमा !) गौतम ! (सव्वत्थोवा बायरआउकाइया पज्जत्तया) माथी मछ। ॥४२ मयि पर्यात छ (बायरआउकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) मा४२ २०१४ायि: २५पर्यात असभ्यात छे (सुहुमआउकाइया अपज्जत्तयाअ. संखेज्जगुणा) सूक्ष्म २५४५४ अपर्याप्त मसv-यात छे (सुहुमआउकाइया पज्जत्तया संखेज्जगुणा) सूक्ष्म २५५४५४ पर्यात सध्यात छे. (एएसिणं भंते !) भगवन् ? 20 (सुहुमतेउकाइयाणं) सूक्ष्म ते४२४॥4 (बायरतेउकाइयाणय) मने ४२ ते४२४ायि४ (पज्जत्तापजत्ताणं) पर्यात भने ५५मिमा (कयरे कयरेहितो) । अनाथी (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) १६५, ५४ा, तुल्य अथवा विशेषाधित छ ? __ (गोयमा !) 3 गौतम ! (सव्वत्थोवा) याथी छ। (बोयरतेउकाइया पज्ज. तया) मा६२ ते०४३४५४ पर्याप्त छ (बायरतेउकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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