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________________ १२९ प्रमेययोधिनी टीका पद ३ सू.७ बादरजीवाल्पबहुत्वम् यिकानां बादराप्कायिकानां बादरतेजाकायिकानां बादरवायुकायिकानां बादरवनस्पतिकायिकानां प्रत्येकशरीरबादरवनस्पतिकायिकानां बादरनिगोदानां बादरत्रसकायिकानां पर्याप्तापर्याप्तकानां कतरे कतरेभ्योऽल्पा या, बहुका वा, तुल्या या, विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोकाः बादरतेजाकायिकाः पर्याप्तकाः बादरत्रसकायिकाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, बादरत्रसकायिका अपप्तिका असंख्येयगुणाः प्रत्येकशरीरवादरवनस्पतिकायिकाः पर्याप्तकाः असं___ (एएसि णं भंते ! हे भगवन् ! इन (बायराणं) बादर जीवों (वायरपुदविकाइयाणं) बादर पृथिवीकायिकों (बायरआउकाइयाणं) बादर अप्कायिकों (बायरतेउकाइयाणं) बादर तेजस्कायिकों (बायरयाउकाइयाणं) बादर चायुकायिकों (बायरवणस्सइकाइयाणं) बादर वनस्पतिकायिकों (पत्तेयसरीर वायरयणस्सइकाइयाणं) प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिकों (बायरनिगोयाणं) बादर निगोदकायों (बायरतसकाइयाणं) बादर त्रसकायिकों के (पज्जत्तापज्जत्ताणं) पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों में (कयरे कयरेहिंतो) कौन किससे (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला याविसेसाहिया वा ?) अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? (गोयमा !) हे गौतम ! (सव्यस्थोवा बायरतेउकाइया पज्जत्तया) सब से कम चादर तेजस्काय के पर्याप्तक हैं (बायरतसकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) बादर त्रसकायिक पर्याप्त असंख्यातगुणा हैं (बायर तसकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) बादर त्रसकायिक अपर्याप्त असंख्यात गुणा हैं (पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया पज्जत्तया (एएसिं णं भंते !) सायन ! 1 (बायराणं) ॥४२ (बोयर पुढवि. काइयाणं) ६२ पृथ्वीयि। (बायर आउकाइयाणं) मा४२ ४४ायि। (बायर तेउकाइयाणं) मा६२ ते४२४।यि। (बायर वाउकाइयाणं) मा६२ पायुायि। (बायर वणस्सइकाइयाणं) ५६२वनस्पतिपिछ। (पत्तेयसरीर बायरवणस्सइकाइयाणं) प्रत्ये। शरी२ ॥४२वनस्पतिथि। (बायर निगोयाणं) मा४२ निगाह ।यो (बायरतसकाइयाणं) माह२ सयोना (पज्जत्ता पज्जत्ताणं) पर्याप्त। सने २५पर्याप्तीमा (कयरे कयरे हितो) ५५ जनाथी (अप्पा वा बहुया तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) અ૫, ઘણા તુલ્ય અથવા વિશેષાધિક છે? (गोयमा !) 3 गौतम ! (सव्वत्थोवा बायर तेउकाइया पज्जत्तया) पाथी सामा२ ते४२४।यन। पर्यात छ (बायरतसकाइया पज्जत्तया असंखेजगुणा) मा४२ सायि४ पर्याप्त मसण्यातमा छ (बायरतसकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) मार सायि४ अपर्याप्त भ्याता छ, (पत्तेयसरीर बायरवणस्सइकाइया प्र० १७ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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