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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३ सू. ६ सूक्ष्मबादरकायद्वारनिरूपणम् विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोकाः सूक्ष्मापर्याप्तकाः, सूक्ष्मपर्याप्तकाः संख्येयगुणाः, एतेषां खलु भदन्त ! सूक्ष्मपृथिवीकायिकानां पर्याप्तापर्याप्तकानां कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा, बहुका वा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोकाः सूक्ष्मपृथिवीकायिकाः अपर्याप्तकाः, सूक्ष्मपृथिवीकायिकाः पर्याप्तकाः संख्येयगुणाः, एतेषां खलु भदन्त ! सूक्ष्माप्कायिकानां पर्याप्तापर्याप्तानां कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा, बहुका वा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोकाः ९९ (एएसि णं भंते !) हे भगवन् ! इन (सुहुमाणं पज्जत्तापज्जगाणं) सूक्ष्मपर्याप्तक अपर्याप्तकों में (कमरे कयरेहिंतो ) कौन किससे (अप्पा बा, बहुया या, तुल्ला वा विसेसाहिया वा) अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? ( गोयमा) हे गौतम ! (सव्वत्थोवा सुहुम अपज्जतगा) सब से थोडे सूक्ष्म अपर्याप्तक हैं ( सुहुम पज्जतगा संखेज्जगुणा) सूक्ष्म पर्याप्त संख्यातगुणा हैं । (एएसि णं भंते ) हे भगवन् ! इन (सुम पुढविकाइयाणं) सूक्ष्म पृथिवीकायिक ( पज्जत्ता पज्जत्ताणं) पर्याप्त और अपर्याप्त में कयरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा) अल्प, बहुत, तुल्य या विशेबाधिक हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! सव्वत्थोचा हुम पुढविकाइया अपज्जन्त्तया) सब से कम सूक्ष्म पृथ्वीकाय के अपर्याप्त हैं (सुहुम पुढविकाइया पज्जत्तया संखेज्जगुणा ) सूक्ष्म पृथ्वीकाय के पर्याप्त संख्यात गुणा हैं । (एएसि णं भंते !) हे भगवन् ! इन (सुहुम आउकाइयाणं) सूक्ष्म अप्काय के (पज्जन्त्तापजत्ताणं) पर्याप्तों और अपर्याप्तों (एएसिणं भंते ! ) हे भगवन् ! मा ( सुहुमाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं) सूक्ष्म पर्याप्त पर्यासभा ( कयरे कयरे हितो) अशु अनाथी (अप्पा वा बहुया वो तुल्ला वा विसेस | हिया वा) महय, धागा, तुझ्य, मगर विशेषाधि छे ? (गोयमा) डे गौतम (सव्वत्थोवा सुहुम अपज्जत्तगा ) अद्याथी मोछा सूक्ष्म अपर्याप्त छे ( सुहुम पज्जत्तगा संखेज्ज गुणा ) सूक्ष्म पर्याप्त संख्यात गला छे (एएसिणं भंते ! ) डे लगवन् ! या (सुहुम पुढविकाइयाणं) सूक्ष्म पृथिवी अयि (पज्जत्तापजत्ताणं) पर्याप्त भने अपर्याप्तभा ( कयरे कयरेहितो) अशु Final (era at agar ar geor ar faduifga¡ a1) meu, ugi, gey al विशेषाधि छे ? ( गोयमा) हे गौतम ! (सव्वत्थोवा सुहुम पुढविकाइया अपज्ज• तया) मधाथी छा सूक्ष्म पृथ्वी डायना अपर्याप्त छे ( सुहुम पुढविकाइया पज्जतया संखेज्जगुणा ) सूक्ष्म पृथ्वी डायना पर्याप्त संख्यात गुणा छे (एएसिणं भंते ! ) डे लगवन् ! भा (सुहुम आउकायाणं) सूक्ष्म जडायना पज्जत्ता पज्जत्ताणं) पर्यासो भने अपर्याप्तोभां ( कयरे कयरेहिंतो ) अथु अनाथी શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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