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प्रमेयबोधिनी टीका पद ६ सू.१२ वैमानिकदेवोपपातनिरूपणम्
भूमिगेभ्य उपपद्यन्ते, मिध्यादृष्टिपर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते, सम्यग्रमिथ्यादृष्टि पर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! सम्यग्दृष्टिपर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क कर्मभूमिग गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, मिध्यादृष्टिपर्याप्तकेभ्य उपपधन्ते, नो सम्यग्मिथ्यादृष्टिपर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते यदा सम्यगृष्टिपर्याप्त संख्येय वर्षायुष्ककर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, किं संयतसम्यग्दृष्टिभ्यः, असंयत सम्यग्दृष्टिपर्याप्तकेभ्यः संयतासंयत सम्यग्दृष्टिपर्यागेहिंतो उववज्जति) क्या सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिजों से उत्पन्न होते हैं (मिच्छद्दिद्विपज्जन्तगेहिंतो उबवज्जति ?) या मिथ्यादृष्ट पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं ? ( सम्मामिच्छद्दिद्विपज्जतगेहिंतो ववज्जति ?) सम्यरिमथ्यादृष्टि पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं ? ( गोयमा ! सम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाज्यकम्मभूमगगन्भवकंतियमसेहिंतो उववज्जति) गौतम ! सम्मदृष्टिपर्याप्त संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिजगर्मज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं (मिच्छद्दिट्ठिपज्जसहिंतो उववज्जति) मिथ्यादृष्टि पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं (नो सम्म मिच्छद्दिद्विपज्जत्तगेहिंतो उववज्जति) सम्यग्मिध्यादृष्टिपर्याप्तकों से नहीं उत्पन्न होते
(जह सम्मद्दिट्टिपज्जत्त संखेज्जवासाज्यकम्मभूमगगग्भवक्कंतियमणूसेहिंतो उववज्जति) यदि सम्मग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं (किं संजत सम्मद्दिविहितो असंयतसम्मद्दिद्वीपज्जत्तएहिंतो संजया संजय सम्मद्दिष्ट्टिपज्जत्तसंखे
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कम्म भूमिगेहि तो उववज्जति ) शुं सम्यग्भूष्टि पर्याप्त संख्यात वर्षायुष्ड उर्भ भूभिलेथी उत्पन्न थाय छे ? (मिच्छदिट्ठिपज्जत्तगेहिं तो उववज्जति ? ) अगर भिथ्यादृष्टि पर्याप्त अथी उत्पन्न थाय छे ? ( सम्मामिच्छदिट्ठि पज्जत्तगेहिं तो उववज्ज ंति ?) सभ्य भिथ्यादृष्टि पर्याप्त अथी उत्पन्न थाय छे ? (गोयमा ! सम्मदिट्टि पज्जत्तग संखेज्जवासा उयकम्म भूमिगगन्भवतियमणूसेहिं तो उबवज्जति) ગૌતમ ! સમ્યગ્દષ્ટિ પર્યંત સંખ્યાત વર્ષાયુષ્ક કમ ભૂમિક ગર્ભજ મનુષ્યાથી उत्पन्न थाय छे ? (मिच्जदिट्टि षज्जत्तगेहिं तो उबवज्जति) मिथ्यादृष्टि पर्याप्त अथ उत्पन्न थाय छे. (नो सम्मामिच्छदिट्ठि पज्जत्तगेहि तो उत्रवज्जंति ?) सभ्य भिथ्याદૃષ્ટિ પર્યાપ્તકાથી નથી ઉત્પન્ન થતા.
( जइ सम्मदिट्टि पज्जत्तसंखेज्जवासाज्यकम्मभूम गगन्भवक तियमणूसे हि तो उत्रवज्जति) यहि सभ्यष्टि पर्याप्त संख्यात वर्षांनी आयुवाजा उर्मभूमि लुन मनुष्योथी उत्पन्न थाय छे, (किं संयतसम्मदिद्विहितो, असंयतसम्मदिट्ठि
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨