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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ६ सू.१२ वैमानिकदेवोपपातनिरूपणम् १०९३ संमूच्छिम मनुष्येभ्यो गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्यः उपपद्यन्ते ? गौतम ! गर्भव्यु. स्क्रान्तिकमनुष्यभ्यो नो समूच्छिममनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, यदा गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, किम् कर्मभूमिगेभ्यः, अकर्मभूमिगेभ्यः, अन्तीपगेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! नो अकर्मभूमिगेभ्यो नो अन्त:पगेभ्य उपपद्यन्ते, कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, यदा कर्म भूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, किं संख्येयवर्षायुष्केभ्यः, असंख्येयवर्षायुष्केभ्यः उपप___ (जइ मणुस्सेहिंतो उवधजति) यदि मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं (किं संमुच्छिममणुस्सेहितो) क्या संमूर्छिम मनुष्यों से ? (गन्भवतियमणुस्सेहिंतो उववजति ?) या गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! गम्भवक्कतियमणुस्सेहितो, नो संमूच्छिममणुस्सेहितो उववज्जति) गौतम ! गर्भज णनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, संमृछिम मनुष्यों से नहीं (जइ गम्भवक्कंतियमणुस्सेहिंतो उववज्जंति) यदि गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं (किं कम्प्रभूमिगेहिंतो अकस्मभूमिगेहितो, अंतरदीवगेहिंतो उववज्जति ?) क्या कर्मभूमिजों से अकर्मभूमिजो से या अन्तरद्वीपजों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा! नो अकम्मभूमिगेहिंतो णो अंतरदीवगेहिंतो उववज्जति) गौतम ! अकर्मभूमिजों से नहीं, अंतर द्वीपजों से भी नहीं उत्पन्न होते (कम्मभूमिगम्भवक्कंतियमणुस्से हितो उववज्जंति) कर्मभूमि के गर्भजमनुष्यों से उत्पन्न होते हैं __ (जइ कम्मभूमगगम्भवक्कंतियमसेहितो उववज्जति) यदि कर्मछ. (णो देवेहिंतो उववज्जति) हेथी अत्पन्न नथी यता. (जइ मणुरसेहितो उववजंति) यहि मनुष्योथी जपन्न थाय छे, तो शु (संमुच्छिममणुस्साहतो) स भूमि भनुष्याथी (गन्भवतिय मणुस्से हितो?) या म भनुष्योथी ? (गोयमा ! गम्भबक्कंतियमणुस्से हितो, नो समुच्छिममणुस्सेहितो उपबति ) गौतम ! म भनुध्यायी उत्पन्न थाय छ, समलिभ મનુષ્યથી નથી ઉત્પન્ન થતા. (जइ गब्भवक्कंतियमणुस्सेहितो उपवज्जंति) यहि मनुष्योथी उत्पन्न थाय छे. (किं कम्मभूमिगेहिंतो, अकम्मभूमिगेहितो, अंतरदीवगेहिंतो उववज्जति ?) शुभ भूभिन्नथी, मम भूमिलथी मन्तद्वीपथी उत्पन्न थाय छ ? (गोयमा ! नो अकम्मभूमिगेहितो, णो अंतरदीवगेहिंतो उववज्जति ?) गौतम ! भा. अभिनयी नही, सतबीयाथी ५५ ५न्न नथी यता (कम्मभूमिगगम्भव कंतिय मणुस्सेहिंतो उववज्जति) भूमिना गलमनुष्याथी पनि थाय छे. (जइ कम्मभूमिगगन्भवतियमणूसेहितो उववज्जति) यहि म भूमिना શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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