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________________ प्रमेययोधिनी टीका पद ६ सू.११ पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकायुपपातनि० १०७९ केभ्य उपपद्यन्ते ? यावत् देवेभ्य उपपद्यन्ते? गौतम ! नैरयिकेभ्योऽपि उपपद्यन्ते, यावत्-देवेभ्योऽपि उपपचन्ते, यदा नैरयिकेभ्य उपपद्यन्ते कि रत्नप्रभापृथिवी नैरयिकेभ्य उपपद्यन्ते, किं शर्कराप्रभापृथिवीनैरयिकेश्य उपपद्यन्ते ? किं बालुकाप्रभापृथिवीनैरयिकेभ्यः पङ्कप्रभापृथिवीनैरयिकेभ्यः, धूमपभापृथिवीनैरयिकेभ्यः तमप्रभापृथिवीनरयिकेभ्यः अधःसनमपृथिवीनैरयिकेय उपपद्यन्ते ? गौतम ! रत्नप्रभापृथिवी नरयिकेभ्योऽपि यावत् - तमःप्रभापृथिवीनैरयिकेभ्योऽपि उपपद्यन्ते से उत्पन्न होते हैं ? (जाव) यावत् (देवेहितो उववज्जति ?) देवों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (नेरइएहितो वि उववज्जंति) नारकों से भी उत्पन्न होते हैं (जाव) यावत (देवेहितों वि उवव. ज्जंति) देवों से भी उत्पन्न होते हैं (जइ नेरइएहितो उववज्जति) यदि नारकों से उत्पन्न होते हैं (किं रयणप्पभा पुढविनेरइएहितो उपवज्जति) क्या रत्नप्रभा पृथिवीके नारकों से उत्पन्न होते हैं ? (किं सक्करप्पभा पुढवि नेरइएहितो उववज्जंति ?) क्या शर्करा प्रभा पृथिवी के नारकों से उत्पन्न होते हैं ? (किं वालुयप्पभा पुढविनेरइएहितो) क्या वालुकाप्रभा पृथ्वी के नारकों से (पंकप्पभापुढवीनेरइएहितो) पंकप्रभा पृथ्वी के नारकों से (धूमप्पभापुढविनेरइएहिंतो) धूमप्रभा पृथिवी के नारकों से (तमप्पभापुढविनेरइएहिंतो) तमःप्रभा पृथिवी के नारकों से (अहेसत्तमापुढविनेरइएहिंतो) अधःसप्तमी पृथिवी के नारको से (उववज्जंति) उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (रयणप्पभापुढविनेरइएहितो विजावतमा पुढविनेरइएहितो वि उववज्जति उत्पन्न थाय छ ? (नेदइएहितो उववज्जति) शु नारथी उत्पन्न थाय छ ? (जाव) यावत् (देवेहिं तो उववज्जति) हेथी उत्पन्न थाय छ ? (गोयमा !) 3 ॐ गौतम ! (नेरइएहिता उववज्जति) नाथी पण उत्पन्न थाय छ ? (जाव) यावत् (देवेहिं तो वि उववज्जति) होवोथी ५४ उत्पन्न थाय छे. (जइ नरेइएहिंतो उव्वजंति) यहि ना थी जयन्न थाय छ, (किं रयणपभा पुढवि नेरइएहिंतो उववज्जति ?) शुत्नप्रभावीन नाथी अपन्न थाय (कि सक्करप्पभा पुढविनेरइएहिंतो उववज्जति ?) शु॥४२॥५मा पृथ्वीना ॥२3थी ७५न थाय छ (किं वालुयप्पभापुढवि नेरइएहितो? शु माथ्वी नाथी (पंकप्पभा पुढवि नेरएहितो) ५४मा पृथ्वीना नाथी (धूमप्पभा पुढवि नेरइएहितो) धूमप्रमा पृथ्वीना नाथी (तमप्पभा पुढविनेरएइहितो) तमः प्रमा पृथ्वी नारथी (अहे सत्तमा पुढवि नेरईएहितो) अधः सातमी पृथ्वीना नारथी (उववज्जति) sपन्न थाय छ ? (गोयमा !) 3 गौतम ! (रयणप्पभा શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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