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________________ १०२९ प्रमेयबोधिनी टीका पद ६ सू. ९ उरपरिसर्पादीनामेकसमयेनोपपातनि० औधिकास्तथैवोपपादयितव्याः नवरं संमूच्छिमेभ्यः प्रतिषेधः कर्तव्यः, वालुकाप्रभापृथिवीनैरयिकाः खलु भदन्त ! केभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! यथा शर्करामभा पृथिवोनैरयिकाः, नवरं भुजपरिसर्पेभ्यः प्रतिषेधः कर्तव्यः पङ्कप्रभापृथिवीनैरयिकाणां पृच्छा, गौतम ! यथा वालुकाप्रमापृथिवीनैरयिका नवरम् - खेचरेभ्यः प्रतिषेधः कर्तव्यः, धूमप्रभापृथिवी नैरयिकाणां पृच्छा, गौतम ! यथा पङ्कप्रभा - पृथिवीनैरयिकाः, नवरं चतुष्पदेभ्यः प्रतिषेधः कर्तव्यः, तमापृथिवी नैरयिकाः araagraat) हे गौतम! इनका उपपात भी सामान्य नारकों के जैसा समझना चाहिए (नवरं ) विशेष ( संमुच्छि मेहितो ) संमूच्छिमों से (डिसेहो ) निषेध ( कायव्वो) करना चाहिए। (वालयप्पभापुढवि नेरइया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति ?) हे भगवन् ! वालुकाप्रभा पृथ्वी के नैरयिक कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? ( गोयमा ! जहा सक्करप्पभा पुढवि नेरइया) हे गौतम! शर्कराप्रभा पृथ्वी के नारकों के समान (नवरं ) विशेष ( भुयपरि सप्पेर्हितो पडिसेहो कायव्वो) भुजपरिसर्पों से उत्पन्न होने का निषेध करना चाहिए । ( पंकप्पा पुढवि नेरइयाणं पुच्छा) पंकप्रभा पृथिवी के नारकों के विषय में पृच्छा (गोयमा ! जहा वालुयप्पभा पुढवि नेरइया) हे गौतम! वालुकाप्रभा पृथिवी के नारकों के समान (नवरं ) विशेष खहरे हिंतो पडिसेहो कायव्वो) खेचरों से निषेध करना चाहिए | (धूमप्पभापुढवि नेरइयाणं पुच्छा ?) धूमप्रभा पृथिवी के नारकों के विषय में प्रश्न ? (गोयमा ! जहा पंकष्पभा पुढवि नेरइया) पंकप्रभा गौतम ! भने। उत्याह पशु सामान्य नारी वा समन्वो लेहये. (नवर) विशेष ( संमुच्छि मेहिंतो) सभूछि भोथी (पडिसेहो ) निषेध (कायव्वो) १२वा लेखे. (वालुभा पुढविरइयाणं भंते ! कओहिंतो उवयज्जंति ?) डे लगवन् ! वालुडायला पृथ्वीना नैर ियांथी उत्पन्न थाय छे ? (गोयमा : जहा सक्करप्पभा पुढवि नेरइयां) हे गौतम ? शरायला पृथ्वीना नारीनी समान (नवर) विशेष ( भुयपरिसप्पेहिंतो पडिसेहो कायव्वो) परिसर्पोथी उत्पन्न थवानी निषेध वो हमे. (पंकप्पा पुढविनेरइयाणं भंते! पुच्छा १) पंअला पृथ्वीना नारडोना विषयभां पृथ्छा ? (गोयमा ! जहा वालुयप्पभा पुढवि नेरइया) हे गौतम! वासु अमा पृथ्वीना नारअना समान (नवरं) विशेष ( खहयरे हिंतो पडिसेहो कायव्वो) ખેચરાથી નિષેધ કરવા જોઇએ. (धूम पभापुढविनेरइयाणं पुच्छा ?) धूभयला पृथ्वीना नारोना विषयभां प्रश्न ? (गोयमा जहा पंकप्पभा पुढविनेरइया ) पंअला पृथ्वीना नारोना શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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