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प्रमेयबोधिनी टीका पद ६ सू.९ उरपरिसादीनामेक समयेनोपपातनि० १०२७ त्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, गौतम ! कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, नो अकर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, नो अन्तरद्वीपकगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, यदि कर्मभूमिग गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, किं संख्येयवर्षायुष्केभ्य उपपद्यन्ते, असंख्येयवर्षायुष्केभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! संख्येयवर्षायुष्ककर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, नो मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? (अंतरदीवगगम्भवक्कंतिय मणुस्सेहितो उववज्जति ?) अथवा अन्तरद्वीपज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! कम्भूयिगगम्भवक्कंतियमणुस्सेहिंतो उववज्जति) गौतम ! कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं । (नो अकम्मभूमिगगम्भवक्कंतिय मणुस्सेहितो उववज्जंति, अकर्मभूमिज गर्भज मनुज्यों से नहीं उत्पन्न होते (नो अन्तर दीवगगम्भक्कतियमणुस्सेहितो उववज्जति) अन्तरद्वीपज गर्भज मनुष्यों से नहीं उत्पन्न होते ।
(जइ कम्भूमिगगम्भवतियमणुस्सेहितो उववज्जति) यदि कर्म भूमि में उत्पन्न हुए गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, (किं संखेज्जवासाउएहिंतो उववज्जति ? ) क्या संख्यातवर्ष की आयु वालों से उत्पन्न होते हैं ? (असंखेन्जवासाउएहिंतो उववज्जति ?) या असंख्यात वर्ष की आयु वालों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! संखेज्जवासाउयकम्मभूमिगगम्भवक्कंतियमणुस्सेहितो उववज्जति) हे गौतम! संख्यातवर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते वतिय मणुस्से हिंतो उबवज्जति ?) Aथ मन्त२६५ म मनुष्याथी उत्पन्न थाय छ ? (गोयमा ! कम्मभूमिगगब्भवतियमणुस्सेहिन्तो उववज्जंति, नो अकम्म. भूमिगगब्भवक्कंतियमणुस्से हिंतो उववज्जति) 3 गौतम ! म भूमि र મનુષ્યોથી ઉત્પન્ન થાય છે, અકર્મભૂમિજ ગર્ભજ મનુષ્યથી ઉત્પન્ન નથી થતા (नो अंतरदीवगगम्भवक्कंतियमणुस्सेहिंतो उववज्जंति) मन्त२ बी५ । म મનુષ્યથી નથી ઉત્પન્ન થતા.
(जइ कम्मभूमिगगब्भवक्कंतियमणुस्सेहिंतो उववज्जति) यह भभूमिमा Grua थये गम मनुष्याथी उत्पन्न थाय छे (किं संखेज्जवासाउएहिंतो उववज्जंति) शुसज्यात पनी आयुष्यवाणामाथी उत्पत्र थाय छे ? (असंखेज्ज वासाउएहिंतो उवबज्जति ?) मा२ मध्यात वर्षनी आयुष्यवाणामाथी उत्पन्न थाय छ ? (गोयमा ! संखेज्ज वासाउयकम्मभूमिगगब्भवतियमणुस्सेहिंतो उववज्जति) હે ગૌતમ! સંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા કર્મભૂમિજ ગર્ભજ મનુષ્યથી
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨