________________
१०२४
प्रज्ञापनासूत्रे न्ते, अपर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! पर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते, नो अपर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते । यदि खेचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेम्य उपपद्यन्ते, किं संमूच्छिमखेचरपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, गर्भव्युत्क्रान्तिकखेचरपञ्चन्द्रिय तिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! द्वाभ्यामपि उपपद्यन्ते, यदि समूच्छिमखेचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, किं पर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते, अपर्याप्तकेभ्यः उपपद्यन्ते ? से उत्पन्न होते हैं (किं पज्जत्तएहितो उववज्जंति, अपजत्तएहितो उववज्जति ?) क्या पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं, अथवा अपर्याप्सकों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (पज्जत्तएहितो उववति, नो अपज्जत्तएहिंतो उववज्जंति) पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं, अपर्यासकों से नहीं उत्पन्न होते । (जइ खहयरपंचिंदियतिरिक्खजोहिएहितो उववज्जंति) यदि खेचरचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों से उत्पन्नहोते हैं (किं समुच्छिमखहयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितोउववज्जंति) क्या संमूछिम खेचरपंचेन्द्रिय तिर्यंचों से उत्पन्न होते हैं (गम्भवक्कंतिय खयर पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ?) गर्भज खेचरपंचेन्द्रियः तियंचों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! दोहितो वि उववज्जंति) हे गौतम ! दोनोंसे उत्पन्न होते हैं।
(जइ संमुच्छिमखहयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उचवज्जति) यदि संमूर्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों से उत्पन्न होते हैं (किं पन्जत्तएहिंतो उववज्जति, अपज्जत्तएहिंतो उववज्जति ?) क्या पर्याप्तकों छ (कि पज्जत्तएहि तो उबसज्जति अपज्जत्तएहितो उधवज्जति) शु पाथी
पन्न थाय छ अथवा अपर्याथी ५न्न थाय छ? (गोयमा !) ई गौतम ! (पज्जत्तएहिंतो उववज्जति नो अपजत्तएहिं तो उवज्जति) पर्याप्त थी ઉત્પન્ન થાય છે અપર્યાપ્તકેથી નથી ઉત્પન્ન થતા
(जइ खयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति) यहि २२ पयद्रिय तिय" यानिकी ५- थाय छ (कि समुच्छिमखहयरपंचिंदियतिरि. क्खजोणिएहिं तो उपज्जति) शुस भूछि भय२ पयन्द्रिय तिय याथी उत्पन्न थाय छ (गम्भवतियखवहरपंचि दियतिरिक्खजोणिएहिंतो उवज्जति) । अय२ ५'येन्द्रिय तिययाथी उत्पन्न थाय छ ? (गोयमा !) 3 गौतम ! (दो हितो वि उबघज्जति) भन्नेथी उत्पन्न थाय छ
(जइ संमुच्छिगखहयरपंचि दियतिरिक्खजे गिएहितो उपवज्जति) यहि सभूछि मेयर पयन्द्रिय तिय याथी 4-थाय छे (किं पज्जत्तएहितो उववज्जति, अपज्जत्तएहिं तो उनवज्जति ?) शु. पर्यायी उत्पन्न थाय छे.
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨