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________________ प्रबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२८ ग्रैवेयकदेवानां स्थानानि ९६३ मलाभासरा शिवर्णाभाः, शेषं यथा ब्रह्मलोके यावत् प्रतिरूपाः, तत्र खलु अधस्तन ग्रैवेयकाणां देवानाम् एकादशोत्तरम् विमानावासशतं भवति इत्याख्यातं तानि खलु विमानानि सर्वरत्नमयानि यावत् प्रतिरूपाणि अत्र खलु अधस्तनग्रैवेयकाणाम् देवानां पर्याप्ता पर्याप्तानाम् स्थानानि प्रज्ञप्तानि, त्रिष्वपि लोकस्य असंख्येयभागे, तत्र खल बहवोऽधस्तनग्रैवेयकादेवाः परिवसन्ति, सर्वे समर्द्धिकाः, सर्वेसमद्युतिकाः सर्वे समयशसः सर्वे समबलाः सर्वे समानुभावा महासौख्या:, (पण्णत्ता) कहे हैं (पाईणपडीणायया) पूर्व-पश्चिम में लम्बे (उदीणदाहिणवित्थिन्ना) उत्तर-दक्षिण में विस्तीर्ण (पडिपुण्ण चंद ठाणसंठिया) प्रतिपूर्ण चन्द्रमा के आकार के (अच्चिमालीभासरासिवण्णाभा) सूर्य के तेज की राशि जैसे वर्ण वाले (सेसं जहा बंभलोगे) शेष वर्णन ब्रह्मलोक कल्प के समान ( जाव पडिरूवा) यावत् प्रतिरूप हैं ( तत्थ vi) उनमें से (हेट्ठिमगेविज्जगाणं देवाणं) नीचे के ग्रैवेयक देवों के ( एकारसुत्तरे विमाणावाससए) एक सौ ग्यारह विमान (भवंतीति मक्खायं) हैं, ऐसा कहा है (ते णं विमाणा) वे विमान (सव्वरयणामया) सर्वरत्नमय हैं (जाव पडिवा) यावत् प्रतिरूप हैं (एत्थ णं) यहां (हेमगेविज्जगाणं देवाणं) अधस्तन ग्रैवेयक देवों के (पज्जन्त्तापत्ता) पर्याप्तों और अपर्याप्तों के (ठाणा) स्थान (पण्णत्ता) कहे हैं (तीसु वि) तीनों अपेक्षाओं से भी (लोगस्स असंखेज्जइभागे) लोक के असंख्यातवें भाग में हैं ( तत्थ णं) वहां (बहवे बहुत-से (हेट्ठिमगेविज्जगा देवा परिवसंति) अधस्तन ग्रैवेयक देव निवास करते हैं (90071) sai d (91809ef0aa1) yaʻulanni awi (zaugıfgufafeza) उत्तर-दक्षिणुभां विस्तीर्ण (पडिपुण्णचंद संठाणासंठिया) प्रतिपूर्ण चन्द्रभाना खाडी२न। (अच्चिमालीभासरासिवण्णाभा) सूर्यना तेरनी राशि मेवा वर्षावाणा (सेसं जहा बंभलोगे) शेष वर्णान ब्रह्मसोङ अपना सभान ( जाव पडिरुवा) यावत् प्रति३५ (तत्थणं) तेथेोभांथी (हेट्ठिमगेविज्जगाणं देवाणं) नीथेना चैवेय देवाना (एकारसुत्तरे विमाणावाससए) मे सेो भगीयार विभान ( भवतीति मक्खायं ) छे, शुभ छु छे (तेणं विमाणा) ते विभाना (सब्वरयणामया) सर्वरत्नमय छे (जाव पडिरूवा) यावत् प्रति३५ छे (एत्थणं) अडि (हेट्ठिमगेविज्जगाणं देवाणं) अधस्तन जैवे. य४ द्वेवेाना (पज्जत्तापज्जत्ताणं) पर्याप्त भने अपर्याप्तोना (ठाणा) स्थान (पण्णत्ता) ४ह्या छे (तिसु वि) त्र अपेक्षामाथी पए (लोगस्स असंखेज्जइभागे) उभा अस ध्यातभा लागभां छे (तत्थण) त्यां (बहवे ) धा धा (हेट्ठिमगेविज्जगा देवा परिवसंति) अधस्तन ग्रैवेय हेव निवास ४रे छे (सव्वे) तेथे अधा (समिढ़िया) શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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