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________________ प्रज्ञापनासूत्रे खलु अवतंसकाः सर्वरत्नमयाः यावत् प्रतिरूपाः अत्र खलु ईशानकदेवानाम् पर्याप्तापर्याप्तानाम् स्थानानि प्रज्ञप्तानि, त्रिष्वपि लोकस्य असंख्येयभागे शेष यथा सौधर्मकदेवानां यावद् विहरन्ति ईशानोऽत्र देवेन्द्रो देवराजः परिवसति, शूलपाणिः, वृषभवाहनः, उत्तराद्धलोकाधिपतिः, अष्टाविंशतिविमानावासशतसहखाधिपतिः, अरजोऽम्बरवस्त्रधरः, शेषं यथा शक्रस्य यावत् प्रभासयन्, स रूववडिसए) जातरूपावतंसक (मज्झे एत्थ ईसाणवडिसए) इनके मध्य में ईशानावतंसक है (ते णं वडिसया) वे अवतंसक (सन्चरयणामया) सर्वरत्नमय हैं (जाव पडिरूवा) यावत् प्रतिरूप हैं (एत्थ गं ईसाणगदेवाणं) यहां ईशानक देवों के (पनत्तापज्जात्ताणं) पर्याप्तों एवं अपर्याप्तों के (ठाणा पण्णत्ता) स्थान कहे हैं (तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे) तीनों अपेक्षाओं से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं (सेस जहा सोहम्मगदेवाणं जाय विहरंति) शेष वर्णन सौधर्मक देवों के समान यावत् विचरते हैं ___ (ईसाणे इत्थ देविंदे देवराया परिवसइ) यहां ईशानक देवेन्द्र देवराज निवास करता है (सूलपाणी) हाथ में शल रखने वाला (वसह वाहणे) वृषभ पर सवारी करने वाला (उत्तरङ्कलोगाहिबई) उत्तरार्ध लोक का अधिपति (अट्ठावीसविमाणावाससयसहस्साहिवई) अट्ठाईस लाख विमानों का अधिपति (अरयंबरवस्थधरे) रज से रहित वस्त्रों का धारक (सेसं जहा सक्करस) शेष वर्णन शक्रेन्द्र के समान (जाव पभासेमाणे) यावत् प्रभासित करता हुआ (से गं) वह (तत्थ) (जातरूववडिंसए) Mत ३५॥१त ४५ (मज्झे एत्य ईसाणवडिंसए) तेमान क्यमा शानात स४ छ (तेणं वडिंसया) ते अवतस। (सव्व रयणामया) स २त्न भय छ (जाव पडिरूवा) यावत् प्रति३५ छ (एत्थणं ईसाणगदेवाणं) महि शान वाना (पज्जत्ता पज्जताणं) पर्यात तेमा अपर्याप्तीना (ठाणा पण्णत्ता) स्थान ४i छ (तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे) ऋणु अपेक्षामाथी सोना मसण्यातमा भागमा छ (सेसं जहा सोहम्मगदेवाणं जाव विहरंति) शेष १- सौधम' हेवोना समान यावत् वियरे छे (ईसाणे इत्थ देविंदे देवराया परिवसइ) डिशान देवेन्द्र ३१२।०४ निवास ४२ छ (सूलपाणि) डायमा शुस रामवावा (वसहबाहणे) वृषम ७५२ सवारी ४२वावा (उत्तरढ लोगाहिवई) उत्तरा सोना अधिपति (अदावीसविमाणावाससयसहस्साहिबई) मध्यावीस विमानान। मधिपति (अरयंवरवत्थधरे) २०४ ॥२॥ वस्त्रोना धा२४ (सेसं जहा सक्कस्स) शेष १णुन शन्द्रना समान (जाव पभासेमाणे) यावत् प्रभासित ४२ता શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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