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________________ प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२२ पिशाचदेवानां स्थानानि ८१९ गाथा:-अणपणिक पणपणिक ऋषिवादिक भूतवादिकौचैव, स्कन्दिक महास्कन्दिक कूष्माण्डाः पतंगकश्चैव ॥१४३॥ इमे इन्द्राः-संनिहिताः, सामान्याः, घातविघातः, ऋषिश्च ऋषिबालः, ईश्वरमहेश्वराः भवति मुवत्सो विशालश्च ॥१४४॥ हासो हासरतिश्च श्वेतश्च तथा भवोमहाश्वेतः । पतंगकश्च पतंगकपतिश्च ज्ञानव्याः आनुपूर्व्या ॥१४५॥॥सू० २२॥ टीका--अथ पर्याप्तापर्याप्तक पिशाचादि देवानां स्वस्थानादिकं प्ररूपयितुमाह-'कहि णं भंते पिसायाणं देवाणं' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कुत्र खलु वानव्यन्तरों की आठ अवान्तर भेदों की संग्राहिका गाथा का अर्थ इस प्रकार है-(अणवणिय) अणपणिक (पणपणिय) पणपर्णिक (इसिवाइयभूयवाइय चेय) और ऋषिवादी भूतवादी (कंदियमहाकंदियकोहंडा) क्रन्दित, महाक्रन्दित, कूष्माण्ड (पयंग चेव) और पतंग ॥१४॥ __(इभे इंदा) इनके इन्द्र ये हैं (संनिहिया) सन्निहित (सामाणा) सामान्य (धायविधाए) धाता, विधाता (इसी य) ऋषि (इसिवाले) ऋषिपाल (ईसरमहेसरा) ईश्वर, महेश्वर (हवइ) हैं (सुवच्छे) सुवत्स (विसाले य) और विशाल ॥१४४॥ (हासे) हास (हासरई) हासरति (वि य) और (सेए य तहा) तथा श्वेत (भवे) है (महासेए) महाश्वेत (पयए य) पतंग (पयगवई य) पतंगपति (णेयव्या) जानने चाहिए (आणुपुच्चीए) अनुक्रम से ॥१४५॥२२॥ टीकार्थ-अब पर्याप्त तथा अपर्याप्त पिशाच आदि देवों के स्व. - વાન-વ્યંતરના આઠ અવાન્તર ભેદની સંગ્રાહિકા ગાથાને અર્થ આ शतना छ (अणवणिय) म ५ (पण पण्णिय) ५९५४ (इसि वाइयभूय वाइया चेव) मन ३षिवाही भूतवाही (कंदियमहाकंदियकोहंडा) न्हित, भन्दित, मांड (पयंगए) पत। (चेव) भने ५त ॥ १४ ॥ (इमे इंदा) तेमना छन्द्र २॥ छ (संनिहिया) सन्निहित (सामाणा) सामान्य (धायविधाए) पात, विधाता (इसीय) ३५ (इसिवाले) ३षिपाल (ईसर महेसरा) श्व२, भव२ (हवइ) छ (सुवच्छे) सुवास (विसाले य) मने विशाल ॥ १४४ ॥ हासे) डास (हासरई) डासति (विय) मने (सेएय तहा) तथा श्वेत (भवे) छ (महासेए) भात (पयंएय) ५ (पगवई य) ५तगपति (णेयवा) तानसे (आणुपुवीए) अनुभथी ॥ १४५ ॥ ॥ २२ ॥ ટીકાથી હવે પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત પિશાચ આદિ દેને સ્થાન આદિની શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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