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________________ प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२१ वानव्यन्तरदेवानां स्थानानि धारिणः, नानाविधवर्णरागवरवस्त्रललं तचित्र चिल्ललगनिवसनाः, विविधदेशीयनेपथ्यगृहीतवेषाः प्रमुदितकन्दर्प कलह के लिकोलाहल प्रियाः, हासबोलबहुलाः, असिमुद्गरशक्ति कुन्तहस्ताः, अनेकमणिरत्नविविधनियुक्तविचित्र चिह्नगताः, महर्द्धिकाः, महाद्युतिकाः, महायशसः, महाबलाः, महानुभागाः, महासौख्याः, हारविराजितवक्षसः, कटकत्रुटितस्तम्भितभुजाः, संगतकुण्डल मृष्टगण्डस्तलकर्णरूप और देह के धारक ( णाणाविवण्णरागवरवत्थललंत चित्तचिल्ललगनियंसणा ) नाना प्रकार के वर्णों वाले, श्रेष्ठ, विचित्र चमकते वस्त्रों के धारक (विविहदे सिनेत्रत्थगहियवेसा) विविध देशों के वेष भूषा धारण करने वाले (पमुइयकंद प्पकलहकेलि कोलाहलप्पिया) प्रसन्न तथा कंदर्प - कलह - केलि - कोलाहल प्रेमी (हास बोलबहुला) हास्य और बोल - कोलाहल की बहुलता वाले (असिमुग्गर सत्तिकुंत हत्था ) हाथों में असि, मुद्गर, शक्ति तथा भाला वाले (अणेग मणिरयण विविहनिज्जुन्तविचित्तविधगया) अनेक और विविध मणियों तथा रत्नों के विचित्र चिह्न वाले (महिटिया) महान ऋद्धि के धारक ( महज्जुइया) महान् कान्ति वाले ( महायसा ) महान् यश वाले (महाबला) अति बलवान् (माणुभागा ) महाप्रभाव वाले (महासुक्खा) महान् सुखयुक्त (हारविराइयवच्छा) हार से सुशोभित वक्षस्थल वाले (कडि भियभुया) कटकों और त्रुटितों से स्तब्ध भुजा वाले ( संग कुंडल मट्टगंड यलकन्नपीठधारी) सुन्दर कुडलों तथा गंडस्थलों को मर्पण करने वाले कर्णपीठ नामक आभूषणों को धारण ७९.३ અને દેહને ધારણ १२नारा ( णाणा विहवण्णरागवरखत्थललंतचित्तचिल्लल्लगनि नियंसणा ) नाना प्रहारना वशेवाणा, श्रेष्ठ, विभित्र यभता वस्त्रोना धार (विविहदेसि नेवत्थ गहियवेसा) विविध देशोनी वेष भूषाधारण ४२नारा, (पमुइय कंदप्पकलहकेलिकोलाहलपिया) प्रसन्न તથા એક કલહ-કેલિકાલાહલ પ્રિય (हासबोलबहुला) हास्य मने मोसना असाडुसना प्रेमी (असिमुग्गरकुंतहत्था) हाथेाभां असि, भुहूगर, शक्ति, तथा भासावाजा (अणेगमणिरयणविहिनिज्जुत्त विचित्त चिंधगया) भने भने विविध भडियो तथा रत्नाना विचित्र चिह्नवाजा (महिड्रढिया ) भडान उद्धिना धा२४ ( महज्जुइया) भड्डान् अन्तिवाणा ( महायसा ) भडान् यशवाजा (महाणुभागा ) भडा प्रभाववाजा ( महा सुक्खा ) भडान सुख युक्त (हारविराइय वच्छा) डारथी सुशोभित वक्षस्थण वाणी (कडयतुडिययभिय सुया) उट। मने त्रुटितोथी स्तब्ध लुलभोवाणा ( संगतकुंडलमट्टगंडयल प्र० १०० શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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