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प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.७ नैरयिकाणां स्थानानि
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अत्र खलु नैरयिकाणां चतुरशीतिर्निरयावा सशतसहस्राणि भवन्तीत्याख्यातम् । ते खलु नरका (वासाः) अन्तो वृताः, बहिश्चतुरस्राः, अधः क्षुरप्र संस्थान संस्थिताः, नित्यान्धकारतामसाः, व्यपगत ग्रह चन्द्रसूरनक्षत्र ज्योतिषिकपथाः, मेदोवसापूतिपटक रुधिरमांस कर्दम लिप्तानुलेपनतलाः, अशुचिवित्राः परमदुरभिगन्धाः, कापोताग्निवर्णभिः, कर्कशस्पर्शाः, दुरध्यासाः, अशुभा नरकाः, अशुभा नरकेषु
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( एत्थ णं) इन पृथिवीयों में (चउरासीइ निरयावास सय सहस्सा भवंतीति मक्खायं ) चौरासी लाख नारकावास होते हैं, ऐसा कहा गया है । (ते णं नरगा) वे नरक (अंतो वहा ) अन्दर से गोल (बाहिं चउरंसा) बाहर से चौकोर (अहे खुरप्प संठाणसंठिया) नीचे छुरे के आकार के (निच्घपारतमसा) सतत अंधकार से अंधेरे (ववगयगह- बंद - सूरनक्खत्त - जोइसियप्पहा) ग्रह, चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र इन ज्योतिष्कों की प्रभा से रहित (मेय-वसा - पूयपडल- रुहिर- सचिक्ख ललित्ताणुलेवणतला) मेद, चर्बी, मवादपटल, रुधिर और मांस के कीचड के लेप से लिप्त तलभाग वाले (असुइ बीसा) अशुचि, वीभत्स (परमदुभिगंधा) अत्यन्त दुर्गंध युक्त (काउय अगणिवन्नाभा) कालोत अग्नि के वर्ण जैसे (कक्खडफासा) कठोर स्पर्श वाले (दुरहियासा) दुस्सह (असुभा) अशुभ (नरग () नरक हैं (असुभा नरगेसु वेयण(ओ) नरकों में अशुभ वेदनाएं हैं (एत्थ णं नेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता) इनमें पर्याप्त अपर्याप्त नारकों के स्थान हैं ।
धूभलामां (तमप्पभाए ) तमः प्रलाभां ( तमतमप्पभाए ) तमस्तभ प्रलाभां (एत्थणं) (चउरासीइ निरयावाससयसहस्सा भवतीति मक्खार्थ) योरासी साज नरावास होय छे. खेभ उडेलु छे (तेणं नरगा) ते नर (अंतो बट्टा ) अंडरथी गोण (बाहिं चउरंसा) महारथी थोरस (अहे खुरप्प संठाणसंठिया) नीथे अस्त्राना मारना (निच्चंधयारतमसा) सतत संघारथी संधारा (ववगयगह बंद - सूरनक्खत्त जोइ - सियप्पहा) अड, यन्द्र, सूर्य नक्षत्र भने ज्योविण्डोनी प्रसाथी रहित (मेयबसा - पूयपडल- रुहिर - सचिक्खिललालित्तागु लेवणतला) भेद-यम-भवाहपटल ५३ ३धिर भने मांसना डीयडना होपथी सियायेस तस लागवाणा (असुइ वीसा ) अशुथि, मीलत्स (परमदुब्भिगंधा) अत्यन्त दुर्गन्ध युक्त (काउय अग णिवन्नाभा) पोत अग्निना वर्णु नेवा (कक्खडफासा) और स्पर्शवाणा (दुरहियासा) दुःसह (असुभ ) अशुल (नरगा) न२४ छे (असुमा नरगेसु वेयणाओ) नरोमां अशुल वेहनाओ। छे (एत्थणं नेरइयाणं पज्जत्ता पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता) એમાં પર્યાપ્ત, અપર્યાપ્ત નારકાના સ્થાન છે,
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧