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प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.३९ समेदवीतरागदर्शनार्यनिरूपणम् ४८७ रागदर्शनार्याश्य, बुद्धबोधितछद्मस्थक्षीणकषायवीतरागदर्शनार्याश्च ? अथ के ते स्वयंयुद्धछद्मस्थक्षीणकषायवीतरागदर्शनार्याः ? स्वयम्बुद्ध छद्मस्थक्षीणकषायवीतरागदर्शनार्याः द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-प्रथमसमयस्वयम्बुद्धछद्मस्थक्षीणकषाययीतरागदर्शनार्याश्थ, अप्रथमसमयरचयम्बुद्ध छद्मस्थक्षीणकषायवीतरागदर्शनार्याश्य, अथवा-चरमसमयस्वयम्बुद्धछद्मस्थक्षीणकषायवीतरागदर्शनार्याश्च । अचरमसमयस्वयम्बुद्धछद्मस्थक्षीणकषायवीतरागदर्शनार्याश्च । ते एते स्वयम्बुद्धछद्मस्थक्षीणकषायवीतरागदर्शनार्याः। अथ के ते बुद्धबोधित छद्मस्थक्षीणकषायवीतरागदर्शछद्मस्थ क्षीणकषाय वीतराग दर्शनार्य और बुद्धबोधित छद्मस्थ क्षीण कषाय वीतराग दर्शनार्य । (से किं तं सय बुद्धखीण०) स्वयं बुद्ध छद्मस्थ क्षीणकषाप वीतरागदर्शनार्य कितने प्रकार के हैं ? (दुविहा पण्णत्ता तं जहा) दो प्रकार के कहे हैं, यथा (पढमसमयसय युद्धछ उ० य अपढमसमयसयं बुद्धछउ० य) प्रथम समयवर्ती स्वयं बुद्ध छद्मस्थ क्षीणकषाय वीतरागदर्शनार्य और अप्रथम समयवर्ती स्वयं बुद्ध छद्मस्थ क्षीणकषाय वीतरागदर्शनार्य (अहवा) अथवा (चरिमसमयसयं बुद्ध० य अचरिमसमयसयं बुद्ध०) चरम समयवर्ती स्वयं बुद्ध छदमस्थ क्षीणकषाय वीतरागदर्शनार्य और अचरम समयवर्ती स्वयंबुद्ध छद्मस्थ क्षीणकषाय वीतरागदर्शनार्य (से त्तं सयंबुद्धछउम०) यह स्वयंवबुद्ध छद्मस्थ क्षीणकषाय वीतरागदर्शनार्य की प्ररूपणा हुई।
(से किं तं बुद्धयोहियछउमत्थ० ?) बुद्धबोधित छद्मस्थ क्षीणकसयंबुद्ध छउमस्थखीण० बुद्धबोहिय छउमत्थखीण०) स्वय सुद्ध ७६६२५ मीषाय વીતરાગ દર્શનાર્ય અને બુદ્ધ બધિત છદ્મસ્થ ક્ષીણકષાય વીતરાગ દર્શનાર્ય
(से किं तं संयंबुद्धखीण० ?) स्वयं मुद्ध छमस्थक्षी पाय वीत। नाय ८८॥ ४॥२॥ छ ? (सयंबुद्धखीण०) स्वय'भुद्ध स्थक्षी ४ाय पीत२१२४ नाय (दविहा पण्णत्ता तं जहा) ये ४२ ४ा छ भ3 (पढमसमयसयंबुद्ध० य अपढमसमयसयंबुद्धछउ० य) प्रथमसभयवती स्वयं सुद्धभस्थ क्षीपाय वीतरागशः નાર્ય અને અપ્રથમ સમયવતી સ્વયં બુદ્ધ છદ્મસ્થ ક્ષીણકષાય વીતરાગ દશનાર્ય.
(अहवा) अथवा (चरिमसमयसयंबुद्ध० य अचरिमसमयसयंबुद्ध०) य२मसमय વતી સ્વયંબુદ્ધ છદ્મસ્થ ક્ષીણકષાય વીતરાગદશનાય અને અચરમ સમયવતી स्वय मुद्ध छड्भस्थक्षी पाय वीतराशनाय (से तं सबुद्धछउ०) । સ્વયં બુદ્ધ છદ્મસ્થ ક્ષીણકષાય વીતરાગ દર્શનાર્યની પ્રરૂપણ થઈ.
(से किं त बुद्धबोहिय छउमत्थ० ?) मुद्ध मोधित छड्भस्थ क्षाषाय पीत।शनाय ८६ प्रा२॥ छ ? (बुद्धयोहियछउमत्थ०) सुध पित छन
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧