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________________ ४५२ प्रज्ञापनासूत्रे तथाप्रकाराः, ते एते शिल्पाः ॥५॥ अथ के ते भापार्याः ? भाषार्याः ये खलु अर्धमागध्या भाषया भाषन्ते । तत्रापि च खलु यत्र ब्राह्मी लिपिः प्रवर्तते । ब्राह्मयां लिपौ अष्टादशविधं लेखविधानं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-ब्राह्मी१, यवनानिका२, दोषापुरिका३, खरोट्टी४, पुष्करशारिका५, भोगवतिका६, प्रहरादिका७. अन्ताक्षरिका८, अक्षर पृ-पु-ष्टिका९, वैनयिकी १०, निह्नविका११, अङ्कलिपिः १२, गणितलिपिः १३, गन्धर्वलिपि:१४, आदर्शलिपिः १५, माहेश्वरी १६, पुच्छकार (लेप्पारा) लेप्य बनाने वाले (चित्तार।) चित्रकार (संखारा) शंग्वकार (दंतारा) दन्तकार (भंडारा) भाण्डकार (जिज्झगारा) जिज्झकार (सेल्लारा) सेल्लकार (कोडिगारा) कोटिकार (जे यावन्ने तहप्पगारा) अन्य जोइसी प्रकार के हैं। (सेत्तं सिप्पारिया) ये शिल्पार्य हुए। (से किं तं भासारिया ?) भाषा से आर्य कितने प्रकार के हैं ? (जे णं अद्धमागहाए भासाए भासें ति) जो अर्द्धमागधी भाषा बोलते हैं (तत्थ वि य णं जत्थ बंभी लिची पयत्तइ) उनमें भी जहां ब्राह्मी लिपि का व्यवहार होता है (अट्ठारसबिहे) अठारह प्रकार का (लेक्खविहाणं) लिपिविधान (पण्णत्ते) कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (बंभी) ब्राह्मी (जवणाणिया) यवनी (दोसापुरिया) दोषापुरिका (खरोट्टी) खरोही (पुक्खरसरिया) पुष्करशारिका (भोगवइया) भोगवती (पहराइया) प्रहरादिका (अंतक्खरिया) अन्ताक्षरी (अक्खरपुरिट्ठया) अक्षर पुष्टिका (वेणइया) वैनयिकी (निण्हइया) निहविका (अंकलिपी) अंकमा मनावना। (पुच्छारा) २०४१२ (लेप्पारा) देय मनावना२(चित्तारा) (२२४१२ (संखारा) ५४२ (दंतारा) तार (भंडारा) मांड२ (जिज्झगारा) २ (सेल्लारा) सेस४२ (कोडिगारा) टि२ (जे यावन्ने तहप्पगोरा) भी साव। प्रा२ना छ (से तं सिप्पारिया) 21 शि५ मा छ. (से कि त भासारिया ?) भाषाथी आर्या 24 प्र४२॥ छ ? मापायी माय (जे णं अद्वमागहाए भासाए भासंति) रे। म भागधी मापा माले छ (तत्थ वि यणं जत्थ बंभी लिवी पवत्तइ) तेम पान्यां ब्राह्मी लिपीना व्यवहार थाय छ (अद्वारसविहे) अढा२ ४१२॥ (लेक्ख विहाण) सिपी विधान (पण्णत्ते) ४यु छ (त जहा) ते 20 रीते छ (बंभी) ब्राझी (जवणिया) यवनी (दोसा पुरिया) ॥ २४॥ (खरोइटी) पट्टी (पुक्खरसारिया) ५५४२ सा२४ (भोगवइया) सागपती (पहराइया) प्रहरा४ि (अंतक्खरिया) २५-ताक्षरी (अक्खर पुट्टिया) २मक्ष२ पृष्टि। (वेणइया) वैनयि। (निण्हइयो) नि-डवि. (अंकलिवी) २५ सिपी (गणियलिवी) गणित lanी શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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