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________________ प्रमेयबोधिनी टीका प्र. १ सू. २ अजीवप्रज्ञापनानिरूपणम् ३१ छाया - अथ का सा अजीवप्रज्ञापना ? अजीवप्रज्ञापना द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा = रूप्यजीव प्रज्ञापना च, अरूप्यजीवप्रज्ञापना च ||०२|| टीका- 'से' अथ, 'किं तं' किं तत्, अथवा का सा, 'अजीवपन्नवणा' - अजीव प्रज्ञापना प्रज्ञप्ता ? इति शेषः, अजीव प्रज्ञापना कतिविधा वर्तते ? इति प्रश्राशयः, भगवानाह - 'अजीवपन्नवणा' अजीवप्रज्ञापना, 'दुबिहा पण्णत्ता' द्विविधा प्रज्ञप्ता, 'तं जहा' तद्यथा, 'रूवि अजीवपन्नवणा य' रूप्यजीव प्रज्ञापना च, अरूवि अजीव पनवणा य' अरूप्य जीवप्रज्ञापना च, तत्र रूपमस्ति एषामिति रूपिणः, रूपग्रहणेन गन्धरसस्पर्शा अपि उपलक्ष्यन्ते, गन्धादिव्यतिरेकेण रूपासम्भवात् । अन्वयार्थ - (से किं तं अजीव पण्णवणा) अजीव प्रज्ञापना का स्वरूप क्या है ? (अजीव पण्णवणा दुबिहा पण्णत्ता) अजीव प्रज्ञापना दो प्रकार की कही है ? (तं जहा ) वह इस प्रकार (रूवि अजीव पण्णवणा) रूपी अजीव की प्रज्ञापना (य) और ( अरूवि अजीव पण्णवणा) अरूपी अजीव की प्रज्ञापना ॥ २ ॥ टीकार्थ :- अजीव प्रज्ञापना किसको कहते है, अर्थात् अजीव प्रज्ञापना कितने प्रकार की है ? श्रीभगवान् उत्तर देते हैं-रूपी अजीव प्रज्ञापना और अरूपीअजीव प्रज्ञापना । जिस में रूप हो वह रूपी कहलाता है । रूप के ग्रहण से गन्ध, रस और स्पर्शका ग्रहण भी समझ लेना चाहिए, क्योंकि व प्रज्ञापनानु स्व३५ शु छे ? अन्वयार्थ - (से किं तं अजीव पण्णवणा) ( अजीव पण्णवणा दुविहा पण्णत्ता) व प्रज्ञापना मे अारनी छे) (तं जहा ) ते या अरे (रूवी अजीव पण्णवणा) ३५ी अभुवनी प्रज्ञापना (य) मने (अरूवि अजीवपण्णवणा) अपि भुवनी प्रज्ञापना ॥ २ ॥ ટીકા અજીવ પ્રજ્ઞાપના કાને કહેવાય ? શ્રી ભગવાન ઉત્તર આપે છે-રૂપી અજીવ પ્રજ્ઞાપના અને અરૂપી અજીવ પ્રજ્ઞાપના જેમાં રૂપ હોય તે રૂપી કહેવાય છે રૂપના ગ્રહણથી ગન્ધ, રસ અને સ્પનુ ગ્રહણ પણ સમજવું જોઇએ કેમકે ગન્ધાદિના અભાવમા એકલા રૂપને લેવુ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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