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________________ ४१२ प्रज्ञापनासूत्रे ते समासतो द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-संमूच्छिमाश्च गर्भव्युत्क्रान्तिकाश्च । तत्र खलु ये ते संमूर्छिमास्ते सर्वे नपुंसकाः । तत्र खलु ये ते गर्मव्युत्क्रान्तिकास्ते खलु त्रिविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-स्त्रियः, पुरुषाः नपुंसकाः। एतेषामेवमादिकानां खचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पर्याप्तापर्याप्तानां द्वादशजातिकुलकोटियोनिप्रमुखशतसहस्राणि भवन्तीत्याख्यातम् । समुद्रों में होते हैं (से तं विषयपक्खी) यह वितत पक्षी की प्ररूपणा हुई। (ते समासओ दुविहा पण्णत्ता) खेचर पंचेन्द्रिय तिथंच संक्षेप से दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (समुच्छिमा य गम्भवक्कंतिया य) संमूर्छिम और गर्भज (तत्थ णं जे ते संमुच्छिमा) उनमें जो संमूर्छिम हैं (ते सव्वे नपुंसगा) वे सब नपुंसक होते हैं (तत्थ णं जे ते गन्भवतिया) उनमें जो गर्मज हैं (ते णं तिविहा पण्णत्ता) वे तीन प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (इत्थी पुरिसा नपुंसगा य) स्त्री, पुरुष और नपुंसक (एएसि णं एवमाइयाणं खहयर पंचिंदिया तिरिक्खजोणियाणं) इत्यादि इन खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों की (पजत्ता. पजत्ताणं) पर्याप्त और अपर्याप्त की (बारसजाइ कुलकोडिजोणियप्पमुहसयसहस्साई भवंतीति मक्खायं) बारह लाख जातिकुल कोटि योनिप्रबह होते हैं, ऐसा कहा है। (सत्तट्ठजाइकुलकोडिलक्खनव अद्धतेरसाइं च) द्वीन्द्रियों की सात छ (से त्तं विययपक्खी) २॥ पितत पक्षीनी प्र३५७॥ २४ (ते समासओ दुविहा पग्णत्ता) मेयर पथेन्द्रिय तिय"य संक्षेप में प्रा२ना जाय छ (त जहा) तये॥ २॥ २२ (संमुच्छिमा य गब्भवक्कंति या य) भूमि मने पल (तत्थ णं जे ते समुच्छिमा) तेयोमा रे सभूमि छ (ते सव्ये नपुंसगो) તેઓ બધા નપુંસક હોય છે (तत्थणं जे ते गम्भवक्कंतिया) तयामा रे मन छ (ते णं तिविहा) तो प्रा२ना हा छ (त जहा) ते ॥ २ छ (इत्थी पुरिसा, नपुंसगा य) स्त्री, ३५, मने नपुंस (एएसि ण एवमाइयाण खहयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाण) २॥ २२ पयन्द्रिय विगेरे तिय यानी (पज्जत्ता पज्जत्ताण) पर्याप्त मन मस्तिनी (बारस जाइ कुलकोडि जोणिप्पमुहसयसहस्साई भवंतीति मक्खाय) मा२ ५ जति કુલ કેટિ યોનિ પ્રવાહ હોય છે, એવું કહ્યું છે. (सत्तट्ट जाइ कुलकोडि लक्ख नव अद्धतेरसाइं च) दीन्द्रियोनी सात aav શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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