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प्रज्ञापनासूत्रे त्रिकोणाकारम् सिङ्गरपदवाच्यम् जलोत्पन्नं फलविशेषरूपं शृङ्गाटकं बोध्यम्, हदश जलजवनस्पतिविशेषः, शैवालः प्रसिद्ध एव कृष्णपनकायक कच्छमाणि, कन्दुकथा-साधारणवनस्पतिविशेषः, एकोनविंशतितमः, 'तय छल्लिपवालेसु य पनपुष्फफलेमु य । मूलग्गमज्झबीएसु जोणीकस्सवि कित्तिया' ॥१०५॥ त्वक छल्लोप्रयालेषु च पत्रपुष्पफलेषु च । मूलाग्रमध्यबीजेषु योनिः कस्यापि (कच्छमाणी) कच्छमाणी (कंदुक्क) कंदुक्य (एगूणवीसइये) उन्नीसवां ___ (तया छल्लिपघालेसु य) त्वचा, छाल, प्रचाल में (पत्तपुप्फलेसु य) पत्र, पुष्प, फल में (मूलग्गमज्झबीएसु) मूल, अग्र, बीज में, (जोणी) योनि (कस्स वि) किसी की कुछ २ (कित्तिया) कही है। ___ (से तं साहारणसरीर वायरवगस्सइकाइया) ये साधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक हैं (से त्तं साहारणसरीर चणस्तइकाइया) यह साधारण शरीर चनस्पतिकायिकों को प्ररूपणा हुई (से तं बायरवणस्सइकाइया) यह बादर वनस्पतिकाय की प्ररूपणा हुई (से तं यणस्सइकाइया) यह वनस्पतिकायिकों की प्ररूपणा समाप्त हुई ॥२४॥
टीकार्थ-जिन वनस्पतियों का यहां निर्देश नहीं किया गया है, उनमें जो साधारण वनस्पति के समान हैं, उन्हें साधारण वनस्पति समझ लेना चाहिए और जिनमें साधारण वनस्पति के लक्षण घटित न हों उन्हें प्रत्येकवनस्पति समझना चाहिए।
सेक्षण (किन्नए) ६ (पणए) पन४ (अवएय) म१४ (कच्छमाणी) ४२७माणी (कंडुक्क) ४४५ (एगूणयीसइमे) मागणीसभा (तया छाल्ली पवालेसु य) पया, छस भने प्रयासमा (पत्तपुप्फफलेसु) पत्र, ५०५, २सने मां (मूलग्गमज्झवीएस) भूण, मश्र, भीमा (जोगी) यानि (कस्स वि) 8ना-is-is (कित्तिया) ४डी छे
(से तं साहारणसरीरवायरवण्णस्सइकाइया) 21 साधा२१ शरी२ ४२ पनस्पतिशायि छ (से तं साहारणसरीरवणस्सइकाइया) मा साधारण शरी२ વનસ્પતિકાયિકેની પ્રરૂપણ થઈ.
(सेत्तं वणस्सइकाइया) PAL ४२ पन३५ति यनी प्र३५४॥ ४ (से तं वणस्सइकाइया) २॥ वनस्पति यिनी ५३५ समास ॥ सू. २४ ॥
ટીકાર્થ-જે વનસ્પતિકાયિકને અહીં નિર્દેશ નથી કરેલો તેમાં જે સાધારણ વનસ્પતિની સમાન છે. તેઓને સાધારણ વનસ્પતિ સમજી લેવા જોઈએ અને જેમાં સાધારણ વનસ્પતિના લક્ષણે ઘટતાં ન હોય તેઓને પ્રત્યેક વનસ્પતિ સમજી લેવાં જોઈએ.
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧