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________________ ३२४ प्रज्ञापनासूत्रे सध्यायम् 'उज्येहलियाय' उद्वेहलिका च, 'कुहण'-कुहनम्, 'कंदुक्के' कन्दुक्यम्, 'एए' एते सप्फाक-सध्याय-कुहनादि वनस्पतिविशेषाः लोकतः प्रतिपत्तव्याः, तेचानन्तजीवात्मकाः अवसेयाः, किन्तु नवरम्-अन्यापेक्षया विशेषस्तु 'कंदुक्के-कन्दुक्ये-वनस्पति विशेषे 'होई' भवति 'भयणाए -भजनया अनन्तजीवात्मको भवति, केऽपि च कन्दुक्य वनस्पतिविशेषः असंख्येयजीवात्मको भवति, इत्याशयः ॥सू० ॥२२॥ मूलम्-बीए जोणिभूए, जीवो वकमइ सो व अन्नो वा। जोवि य मूले जीवा, सोऽवि य पत्ते पढमयाए ॥१॥ सव्यो वि किसलओ खलु उग्गममाणो अणंतओ भणिओ। सो चेय विवडतो, होइ परित्तो अणंतो वा ॥२॥सू०२३॥ ___ छाया-बीजे योनिभूते जीवो व्युत्क्रामति स वा अन्यो वा । योऽपि च मूले जीवः सोऽपि च पत्रे प्रथमतया ॥१॥ सर्वोऽपि किसलयः खलु उद्गच्छन् अनन्तको भणितः । स एव विवर्द्धमानो भवति परीतः अनन्तो वा ॥२॥ सू० २३॥ सप्फाक, सज्झाय (सध्याय), उव्वेहलिया, कुहन, एवं कन्दुक्य, इन वनस्पतियों को लोक से समझना चाहिए । ये सब अनन्तजीवात्मक होती हैं, किन्तु विशेष यह है कि कंदुक्य नामक वनस्पति में भजना है। अतएय कोई कंदुक्य देशभेद से अनन्त जीवात्मक होती है और कोई असंख्यातजीवात्मक होती है ॥२२॥ शब्दार्थ-(बीजे) बीज में (जोणिभूए) योनिभूत में (जीवं) जीव (वक्कमइ) उत्पन्न होता है (सो व) वही (अन्नो वा) या दूसरा (जो विय) और जो भी (मूले) मूल में (जीवों) जीव है (सो वि य) वह भी (पत्ते) पत्र में (पढमयाए) प्रथम रूप से (सव्यो वि) सब ही (किसलओ) कोंपल खलु निश्चय से (उग्गमસફાક, સજઝાય, ઉન્હેતલિયા, તેમજ કન્હા, આ વનસ્પતિઓને લેક પાસેથી સમજી લેવી. આ બધી વનસ્પતિ અનન્ત જીવ વાળી હોય છે. પણ વિશેષતા એ છે કે કન્દય નામની વનસ્પતિમાં ભજના-વિકલ્પ છે તેથી જ કઈ કંદુકય દેશભેદે અનન્ત જીવાત્મક હોય છે. અને કોઈ અસંખ્યાત જીવાત્મક હોય છે. શાસૂ. ૨૨ साथ-(बीजे) मीमा (जोणिभूए) योनिभूतभा (जीव) १ (वक्कमइ) उत्पन्न थाय छ (सोव) ते (अन्नोवा) मगरणीत (जेविय) भने २ ५५ (मुले) भूगमा (जीवो) ०१ छ (सो वि य) ते ५५] (पत्ते) पानमा (पढमयाए) प्रथम ३५मा શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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