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________________ प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.२१ साधारणशरीरवनस्पतिकायिकाः ३०५ परीतजीचं फलं तत्तु, यानि चान्यानि तथाविधानि ॥९॥ यस्य वीजस्य भग्नस्य, हीरो भङ्गे प्रदृश्यते। परीतजीवं तु तद् बीजम्, यानि चान्यानि तथाविधानि ॥१०॥ यस्य मूलस्य काष्ठात्, त्वक् बहुलतरा भवेत् । अनन्तजीवा तु सा त्वक्, याश्चान्यास्तथाविधाः ॥११॥ यस्य कन्दस्य काष्ठात् त्वक् बहुलतरा भवेत् । अनन्तजीवा तु सा त्वक, याश्चान्या स्तथाविधाः॥१२॥ यस्य स्कन्धस्य काष्ठात. त्वकू बहुलतरा भवेत् । अनन्तजीवा तु सा त्वक, याश्चान्या स्तथाविधाः ॥१३॥ यस्याः शाखायाः काष्ठात्, त्वक् बहुलतरा भवेत् । अनन्तजीवा तु सा त्वक, याश्चान्या स्तविधाः॥१४॥ यस्य मूलस्य काष्ठात्, त्वक् तनुकतरा भवेत् । परीत आगे की गाथा संख्या ७१ तक का अर्थ पूर्ववत् ही है, अतएव पृथक-पृथकू नहीं लिखा जाता। (जस्स) जिस (मूलस्स) मूल के (कट्ठाओ) मध्यवर्ती सारभाग से (छल्ली) छाल (बहलतरी) अधिक मोटी (भवे) होती है (अणंतजीवा) अनन्त जीवों वाली (तु) तो (सा) वह (छल्ली) छाल (जे यावन्ने तहाविहा) अन्य जो भी छाल ऐसी हो, उसे भी उसी प्रकार अर्थात् अनन्त जीव समझना चाहिए ॥७२॥ गाथांक ७३ से ७५ तक का अर्थ पूर्ववत् । (जस्स) जिस (मूलस्स) मूल के (कट्ठाओ) मध्यवर्तीसार भाग से (छल्ली) छाल (तणुययरी) अधिक पतली (भये) हो (परित्तजीवा) प्रत्येकजीव चाली (उ) तो (सा) वह छल्ली) छाल (जे याबन्ने तहाविहा) अन्ये जो ऐसी हो उसे भी प्रत्येक शरीर जानना चाहिए ॥७६॥ આગળની ગાથા સંખ્યા ૭૧ સુધીના શબ્દાર્થ પૂર્વવત્ જ છે. તેથી ભિન્ન ભિન્ન નથી લખેલ (जस्स) २ (मूलस्स) भूगना (कट्ठाओ) मध्यवती सा२ थी (छल्ली) छाद (बहलतरी) २धि भाटी (भवे) डाय छे. (अणंत जीवा) अनन्त यो वाणी (तु) त(छल्ली) छस (यावन्ने तहा विहा) अन्य २ ४ छस मेवी हाय तेयाने ५९५ ते ४२ना अर्थात અનન્ત જીવ સમજવા જોઈએ છે ૭૨ છે ગથાંક ૭૩ થી ૭૫ સુધીના અર્થ પૂર્વવત છે. (जस्स) २ (मूलस्स) भूगना (कट्टाओ) मध्यवती सा२ माथी (छल्ली) छ (तणुययरी) अधि४ पाती (भवे) हाय (पस्तिजीवा) प्रत्ये १ पाणी (उ) तो (सा) ते (छल्ली) छस (जो यावन्ने तहा विहा) अन्य २ सपा हाय તેને પણ પ્રત્યેક શરીર જાણવી જોઈએ. ૭૬ . प्र० ३९ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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