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________________ २७० प्रज्ञापनासूत्रे मूलम्-से किं तं पव्वगा? पव्वगा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-ईवखू य इक्खुवाडी वीरुणी तह एकडे य मासे य। सुंठे सरे य वेत्ते, तिमिरे संतपोरग णले य ॥२२॥ वंसे२ वेच्छ कर्णए, ककोयंसे य चौवयंसे य। उदएँ कुडएँ विसंए कंडी वेल्ले य कल्लोणे ॥२३॥ जे यावन्ना तहप्पगारा। से तं पव्वगा ॥६॥ छाया-अथ के ते पर्वकाः ? पर्वका अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-ईक्षुथ१ ईक्षवाटी२ वीरुणी३ तथा एक्कडश्च४ माषश्व५ । सुण्ठः ६ शरश्च७ वेत्रा८ तिमिरः ९ शतपर्वकः १० नलथ १२२२॥ वंशः १२ वेच्छू १३ कनकः १४ कङ्कावंशय १५ चापवंशश्च १६ । उदकः १७ कुटजः १८ विसकः १९ कण्डा २० वेल्लश्च २१ कल्याणः २२।२३। ये चान्ये तथाप्रकाराः । ते एते पर्वकाः ६। शब्दार्थ-(से किं तं पव्यया ?) पर्वक वनस्पति कितने प्रकार की है ? (अणेगविहा) अनेक प्रकार की (पण्णत्ता) कही हैं (तं जहा) वे इस प्रकार हैं-(इक्खू य) इक्षु और (इक्खुवाडी) इचवाटी, (वीरुणी) चीरुणी, (तह) तथा (एक्कडेय) एक्कड (मासे य) माष, (सुंठे) सुण्ठ, (सरे) शर (वेत्ते) वेत्र, (तिमिरे) तिमिर, (सतपोरग) शतपर्वक, (णले य) और नल, (वंसे) वंश, (वेच्छू) वेच्छू, (कणए) कनक, (कंकावंसे य) और कंकावंश (चायवंसे य) और चापयंश, (उद्ए) उदक, (कुडए) कुटज, (विसए) विसक, (कंडा) कण्डा, (वेल्ले य) और वेल्ल (कल्लाणे) कल्याण । (जे यावन्ने तहप्पगारा) और जो इसी प्रकार के हैं, वे भी पर्वक में ही गिनने चाहिए (से तं पव्यगा) यह पर्वक की प्ररूपणा हुई।॥२५॥ शहाथ-(से कि तं पव्वगा) ५१४ वनस्पति eel andनी छ ? (पव्वगा) प' (अणेगविहा) भने ५४२नी (पण्णत्ता) ४डी छ (तं जहा) तेसो २॥ प्रहार (इक्वय) शेखाडी मने (इक्खुवाडी) Jशुवाटि। (वीरुणी) वी३०ी (तह) तथा (एक्कडेय) मे४४3 (मासेय) भाष (सुठे) सु (सरे) श२ (वेत्ते) वेत्र (तिमिरे) तिभि२ (सत्तपोरुग) शत५४ (णलेय) मने नस (वंसे) ५५ (वेच्छू) वेधू (कणए) ४४ (कंकावंसेय) भने ४४१श (चाववंसेय) मने या५५ (उदए) SEX (कुडए) ४८४ (विसए) विस४ (कंडा) ४. (वेल्लेय) मने वेद (कल्लाणे) त्या (जे याव-ने तहप्पगारा) मने १ २0वी तना छतेमाने ५५ ५ मा ५ गया नये (से तं पव्वगा) २पनी प्र३५। २७. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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