SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२६ प्रज्ञापनासूत्रे अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः 'तं जहा उस्सा हिमए, करए हरतणुए, सुद्धोदए, सीओदए, उसिणोद, खारोदय, खट्टोदए, अंबिलोदए, लवणोदए, वारुणोदए, खीरोदए, ओदर, खोओदए, रसोद ए' - तद्यथा 'उस्सा' - अवश्यायः - त्रेहः 'हिमए' - हिमम् - स्त्यानोदकम् 'महिया' महिका - गर्भमासेषु सूक्ष्मवर्षः, 'करए' करका - घनोपलः, 'हरतणु' - हरतणुर्थी भुवमुद्भिद्य गोधूमाङ्कुरतृणाग्रादिषु बद्धो बिन्दुरूपो जायते, 'सुद्धोदए' शुद्धोदकम् - अन्तरिक्षसमुद्भवं नद्यादिगतच, तच्च स्पर्शरसादि भेदादनेकविधम्, 'सीतोद' शीतोदकम् - नदीतडागावटवापी पुष्करिण्यादिषु शीतपरिणामम् 'उसिणोदए' - उष्णोदकम् - निसर्गत एव ववचिदनिर्झरादौ उष्णपरिणामस् 'खारोदए' क्षारोदकम् - ईपल्लवणस्वभावम् 'खट्टोदए' ईषदम्लपरिणामम, 'अविलोदए' - अम्लोदकम्, स्वभावत एबाम्लपरिणामं काञ्जिकवत्, 'लवणोदए' लवणोदकम् लवण समुद्रे, 'वारुणोदए' वारुणोदकं वरुणसमुद्रे, 'खीरोदए' क्षीरोदकं क्षीरसमुद्रे, 'घओदए' - घनोदकम् 'खोओदए' क्षोदोदकम् - इक्षुसमुद्रे, 'रसोदए' रसोके कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-ओस, हिम (बर्फ) महिका अर्थात् गर्भ मासों में होने वाली सूक्ष्म वर्षा - कोहरा, करक - ओला, हरतनु पृथ्वी को भेदन करके गेहूं आदि के पौधों पर या घास पर जम जाने वाला जलबिन्दु, शुद्धोदक अर्थात् अंतरिक्ष में उत्पन्न होने वाला जल और नदी आदि का जल, (यह स्पर्श रस आदि के भेद से अनेक प्रकार का होता है) शीतोदक अर्थात् नदी, तालाब, कूप, बावडी, मुष्करिणी आदि का शीतल जल, उष्णोदक- किसी-किसी झरने आदि से निकलनेवाला स्वाभाविक उष्णपरिणाम वाला जल, क्षारोदक (थोडा खारा जल) खट्टोदक (थोडा खट्टा जल) अम्लोदक स्वाभाविक अम्ल जल, (कांजी के समान) लवणोदक ( लवणसमुद्रका पानी) वरुणोदक (वरुणवर समुद्रका जल), क्षीरोदक (क्षीरसागर का जल ) घृतो શ્રી ભગવાન્ ઉત્તર આપે છે.માદર અકાયિક અનેક પ્રકારના કહેલા છે, તેઓ આ રીતે છે—એસ, હિમ (બરફ) મહિકા અર્થાત્ કે ગરમીના સમયમાં थनारी सूक्ष्म वर्षा, (अडश - ४२२, मोसा-) हरतनु, पृथ्वीने झडीने ध વિગેરેના છેડ ઉપર કે ઘાસ પર જમા થતા જલબિન્દુ, શુદ્ધોદક અર્થાત્ અંતરિક્ષમા ઉત્પન્ન થનારૂ પાણી અને નદી વિ. નુ પાણી. (તે સ્પર્શી રસ આદિના लेट्टे भने अारनु भने छे) शीतोह अर्थात् नही, तलाव, हुवा, पाप माहि નું શીતલજલ, ઉષ્માદક કાઇ ઝરણામાંથી કુદરતે નિકળતુ ઉષ્ણુ પરિણામવાળુ भ्स, क्षारोह (थोडु भाई पाणी) (खट्टोदक) थोडु भाटु पाणी अभ्सोह (मुहरती भाटु पाथी) पशुह (सवायु समुद्रनु पाणी) पा३४४ (३युवर શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy