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________________ प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.११ जीयप्रज्ञापना समापन्नजीव प्रज्ञापना ॥ अथ कासा परम्परासिद्धासमापन्न नीवप्रज्ञापना ? परम्परासिद्धासंसारसमापनजीवप्रज्ञापना अनेकविधा प्रज्ञता, तद्यथा-अप्रथमसमयसिद्धा१, द्विसमयसिद्धार, त्रिसमयसिद्धा३, चतुःसमयसिद्धा४, यावद् दशसमयसिद्धा१०, संख्येयसमयसिद्धा११, असंख्येयसमयसिाद्ध १२, अनन्तसमयसिद्धा १३॥ सा एषा परम्परासिद्धासंसारसमापन्नजीवप्रज्ञापना ॥सू०११|| ____टीका-अथाल्पवक्तव्यतया संसारसमापनजीवप्रज्ञापनायाः प्रथमोपात्तत्वेऽपि एक ही समय में अनेक सिद्ध (से तं) यह (अणंतरसिद्ध असंसार समावन्नजीवपन्नवणा) अनन्तरसिद्ध-मुक्त जीवों की प्ररूपणा है । (से किं तं परंपरसिद्ध असंसार समावण्णजीवपन्नवणा?) परम्परा सिद्ध मुक्त जीवों की प्ररूपणा क्या है ? वह (अणेगविहा) अनेक प्रकार की (पण्णत्ता) कही है (तं जहा) यह इस प्रकार है (अपढम समयसिद्धा) अप्रथम समयसिद्ध (दुसमयसिद्धा) द्विसमयसिद्ध (तिसमयसिद्धा) त्रिसमयसिद्ध (चउसमयसिद्धा) चार समय के सिद्ध (जाव) यावत्-तक (संखिजसमयसिद्धा) संख्यात समय के सिद्ध (असंखिजसमयसिद्धा) असंख्यात समय के सिद्ध (अणंतसमयसिद्धा) अनन्त समय के सिद्ध (से तं परंपरसिद्ध असंसार समावण्णजीयपण्णवणा) यह परम्पर सिद्ध मुक्त जीवों की प्ररूपणा है (से तं असंसार समावण्णजीवपण्णवणा) यह मुक्त जीवों की प्ररूपणा है। सूत्र ११॥ टीकार्थ-मूल पाठ में यद्यपि संसार समापन्न जीवप्रज्ञापना को व सिद्ध (एकसिद्धा) २३४ सिद्व (अणेगसिद्धा) ये ४४ समयमा मने सिद्ध (सेत्तं) 24 (अणतरसिद्ध असंसार समाववण्णजीवपण्णवणा) अनतरसिद्ध મુક્ત જીની પ્રરૂપણા છે. (से किं तं पर परसिद्धअसंसारसमावण्णजीवपन्नवणा ?) ५२ ५२॥ सिद्ध भुत योनी प्र३५। शु छ ? (अणेगविहा) ते माने प्रा२नी (पण्णत्ता) ४डी छ (तं जहा) ते २॥ ते (अपढमसमयसिद्धा) प्रथमसमय सिद्ध (दुसमसिद्धा) द्विसमय सिद्ध (तिसमयसिद्धा) त्रिसमय सिद्ध (चउसमयसिद्धा) या२ समय सिद्धा (जाव) यां सुधी (असंखिज्जसमयसिद्धा) २१सच्यात समय सिद्ध (अणंतसमयसिद्धा) मनत समय सिद्ध (से तं परं परसिद्ध असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा) २॥ ५२ ५२१ सिद्ध मुश्त योनी ५३५॥ छ (से तं असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा) - मुद्रत योनी प्र३५४ा छ । सू. ११ । ટીકાઈ –મૂળ પાઠમાં જે કે સંસાર સમાપન જીવ પ્રજ્ઞાપનાને પહેલા प्र० २२ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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