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प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२९ सिद्धानां स्थानादिकम्
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शतानि त्रयत्रिंशानि धनुविभागः खलु भवति ज्ञातव्यः । एषा खलु सिद्धानाम् उत्कृष्टावगाहना भणिता || १५४ ॥ चतस्रश्च रत्नयः रत्निस्त्रिभागोना च बोद्धव्या । एषा खलु सिद्धानां मध्यमावगाहना भणिता || १५५ || एका च भवति तीसरा भाग कम (सिद्धाण) सिद्धों की (ओगाहणा) अवगाहना (भणिया) कही गई है ॥ १५२ ॥
(जं संठाणं) जो संस्थान ( तु इहं भवं चयंतस्स ) इस भव को त्यागते हुए का (चरिमसमर्थमि) अन्तिम समय में (आसी य) था ( पदेसघणं) प्रदेशों से सम्पन (तं) वह (संठाण) संस्थान (ताहिं) वहां (तस्स ) उसका ॥ १५३ ॥
(तिन्नि सया) तीन सौ (तित्तीसा) तेतीस ( धणुन्तिभोगो य) एक धनुष का तीसरा भाग (होइ ) होती है (नायव्वो) जानना चाहिए (ऐसा ) यह (खलु) निश्चय से (सिद्धाणं) सिद्धों की (उक्को सोगाहणा) उत्कृष्ट अवगाहना (भणिया ) कही है ॥ १५४॥
( चत्तारि य रयणीओ) चार हाथ (रयणीतिभागूणिया य बोद्धव्वा) त्रिभाग कम एक हाथ जानना चाहिए ( एसा ) यह ( खलु ) निश्चय (सिद्धाणं) सिद्धों की (मज्झिम ओगाहणा ) मध्यम अवगाहना ( भणिया) कही है ॥ १५५ ॥
(एगा य होइ रयणी अट्ठेव य अंगुलाई साहिया) एक हाथ और आठ अंगुल सहित (एसा खलु सिद्धाणं) यह निश्चय से सिद्धों की (सिद्धाणं) सिद्धोनी (ओगाहणा ) अवगाहना (भणिया) एडी छे ॥ १५२ ॥
(जं संठाणं) ने संस्थानथी (तु इहं भवं चयंतरस) या लवने त्यागनाशना ( चरिमसमर्थमि) अन्तिम समयमा (आसीय ) ता (पदेसघणं) प्रदेशोथी सघन (तं) ते (संठाणं) संस्थान ( तहिं ) त्यां (तस्स) तेना ॥ १५३ ॥
( तिन्नि सया) सो (तित्तीसा) तेत्रीस ( धणुत्तिभागो य) ये धनुषना त्रीले लाग (होइ) होय छे (नायब्त्रो) लागुवु लेहये (एसा ) मा ( खलु) निश्वयथी (सिद्धाणं) सिद्धोना (उक्को सोगाहणा) उत्कृष्ट भवगाना (भणिया) डी छे ॥१५४॥
( चत्तारि य रयणीओ) यार हाथ ( रयणी तिभागूणिया य बोद्धव्या) भाभु लाग भोछा से हाथ लगवा लेहये (एसा) मा ( खलु ) निश्चय (सिद्धाणं) सिद्धोनी (मज्झिम ओगाहणा ) मध्यम अवगाहना (भणिया) डी छे ॥ १५५ ॥ (एगाय होइ रयणी अद्वेव य अंगुलाई साहिया ) मे हाथ अने मा गुस सहित (एसा खलु सिद्धाणं) मा निश्चयथी सिद्धोनी ( जहन्न ओगाहणा भणिया) धन्य व्यवगाना ही छे ॥ १५६ ॥
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧