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________________ ९३४ जीवाभिगमसूत्रे खवित्ता पभू-तमेव-अणुपरिवट्टित्ताणं-गिण्हित्तए ? हंता-गोयमा ! पभू०' हे भदन्त ! महर्द्धिको-महाद्युतिको-महाबलो-महा सौख्यः महायशाः-महानुभागो देवः स खलु स्वगमनात्यागेव लोष्टादि पुद्गलं प्रक्षिप्य, ततः परं जम्बू मनुप्रदक्षिणी कुर्वन् यदीच्छेत्तं पुद्गलं क्षिप्तं-भूमावपतितं सन्तं तदन्तराले धावमानो धर्तुं तदा किं तथाकर्तुं शक्नुयात् ? भगवानाह-हन्त-गौतम ! प्रभुः । 'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-देवे णं महडिए जाव गेण्हित्तए ? गोयमा ! पोग्गले खित्ते समाणे पुवामेव सीग्धगई भवित्ता-तओ पच्छा मंदगई भवई, देवेणं महिडिए जाव महाणुभागे पुवंपि-पच्छावि सीहे सीहगई (तुरिए तुरियगई) चेव से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ जाव एवं अणुपरियट्टित्ताणं गेण्हित्तए' तत्केनार्थेन भदन्त ! कथं जाव महाणुभागे पुच्चामेव पोग्गलं खवित्ता' हे भदन्त ! महद्धिक, यावत्-महाद्युतिक, महासुखी, महायशस्वी, एवं महाप्रभावशाली कोई देव प्रदक्षिणा लगाने से पहिले पत्थर आदि पुद्गल को अपने स्थान से फेंक कर 'पभूतमेव अणुपरिवट्टित्ताणं गिण्हित्तए' फिर जम्बूद्धीप की प्रदक्षिणा करे और प्रदक्षिणा करते समय यदि वह चाहे तो उस जमीन तक नहीं पहुंचे हुए पत्थर को बीच में ही क्या ग्रहण कर सकने में समर्थ हो सकता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता, पभू' हां, गौतम ! वह देव उस समय उस फेंके गए पत्थर को बीच में ही ग्रहण करने में समर्थ हो सकता है 'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चति देवेणं महिडिए जाव गिण्हित्तए' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं-कि वह महर्द्धिक आदि विशेषणों वाला देव फेंके गये पत्थर को बीच में ही, जम्बूद्वीप की प्रदक्षिणा ढिए जाव महाणुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खवित्ता' 8 लगवन् मद्धि, यावत् મહાદ્યુતિક, મહાસુખી, એવં મહા પ્રભાવશાલી કેઈ દેવ પ્રદક્ષિણા કરતાં પહેલાં पत्थर विगेरे पुगसाने पोताना स्थान ५२थी ३४ीन 'पभू तमेव अणुपरि वट्टित्तावं गिण्हित्तए' ते पछी दीपनी प्रक्षिए। ४२ मने प्रदक्षिण કરતી વખતે જે તે ઇચ્છે તે એ જમીન સુધી ન પહોચેલા પત્થરને વચમાંજ શું પકડી લઈ શકે છે? અર્થાત્ પકડવામાં સમર્થ થઈ શકે છે? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभुश्री गौतमस्वामीन. ४ छ -'हंता पभू' । गौतम! ये हेव से સમયે એ ફેંકેલા પત્થરને વચમાંથી જ પકડી લેવામાં સમર્થ થઈ શકે છે. 'से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चंति देवेणं महिइढिए जाव गिण्हित्तए' मावन् ! આપ એવું શા કારણથી કહે છે કે-એ મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષ વાળા દેવ ફેંકવામાં આવેલ પત્થરને જંબુદ્વીપની પ્રદક્ષિણા કરતી વખતે વચમાંથી જ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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