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________________ ९२८ जीवाभिगमसूत्रे - दुब्भिसदपरिणामेय एवं चक्खिंदिय बिसयादि हि वि' श्रोत्रेन्द्रियविषयः खलु मदन्त ! पुलपरिणामः कतिविधः प्रज्ञप्तः ? भगवान् ब्रूते - हे गौतम ! द्विविधः, तद्यथा - शुभः शब्दपरिणामश्व, अशुभः शब्दपरिणामश्च । एवं चक्षुरिन्द्रिय विषयादिभिरपि बोध्यः तदाह - 'सुरूवपरिणामेय दुरुवपरिणामेय एवं सुरभिगंधपरिणामेय - दुरभिगंधपरिणामेय एवं सुरसपरिणामेय दूरसपरिणामेय, एवं सुफासपरिणामेय, दुफासपरिणामेय' सुरूपपरिणामश्च - दूरूपपरिणामश्च, एवं सुरभिगन्धपरिणामश्च - दुरभिगन्धपरिणामश्च, एवं सुरसपरिणामश्च - दूरसपरिणामश्च, एवं पोग्गल परिणामे कइविहे पण्णत्ते' हे भदन्त ! श्रोत्रेन्द्रिय का विषय भूत जो पुद्गल परिणाम है वह कितने प्रकार का कहा गया है ? 'गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते' श्रोत्रेन्द्रिय का विषय भूत पुद्गल का परिणाम दो प्रकार का कहा गया है 'तं जहा' जैसे- 'सुब्भिसद्द परिणामेय, दुब्भिसद्दपरिणामेय' एक सुरभि शब्द परिणाम और दूसरा दुरभि शब्द परिणाम एवं चक्खिदिय विसयादि एहि वि सुरूव परिणामे' इसी तरह से चक्षु इन्द्रिय का विषयभूत पुद्गल परिणाम भी शुभ रूप परिणाम और अशुभ रूप परिणाम के भेद से दो प्रकार का है नासिका इन्द्रिय का विषयभूत पुद्गल परिणाम भी सुरभिगंध परिणाम और दुरभिगंध परिणाम के भेद से दो प्रकार का होता है, रसनेन्द्रिय का विषय भूत पुद्गलपरिणाम सुरसपरिणाम और दुरसपरिणाम के भेद से दो प्रकार का होता है' इसी तरह से स्पर्शन ભગવન્ ! શ્રેત્રેન્દ્રિયના વિષયભૂત જે પુદ્ગલ પિરણામ છે; તે કેટલા પ્રકારના अहेवामां आवे छे ? ' गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते' हे गौतम! श्रोत्रेन्द्रियना વિષયભૂત જે પુદ્ગલ પરિણામે છે, તે એ પ્રકારના કહેવામાં આવેલ છે. સૂં जहा' ?भ - 'सुब्भिसद्दपरिणामेय दुब्भिसद्दपरिणामेय' मे सुरभिशब्द परिणाम अने मी हुरलि शब्द परिणाम ' एवं चक्खिदिय विसयादिएहि वि सुरूव परिणामे' ४ प्रमाणु यक्षु इंद्रियना विषयभूत युगल परिणामी पशु શુભ પરિણામ અને અશુભ રૂપ પરિણામના ભેદથી એ પ્રકારના છે. નાસિકા ઈંદ્રિયના વિષયભૂત પુદ્ગલ પિરણામ પણ સુરભિગ ́ધ પરિણામ અને દુરભિ ગંધ પરિણામના ભેદ્યથી એ પ્રકારના ઇંદ્રિયના વિષયભૂત પુદ્ગલ પિરણામ સુરભિ પરિણામ અને દુરભિ પરિણામના ભેદથી એ પ્રકારના હોય છે. એજ પ્રમાણે રસન ઇન્દ્રિયના વિષયભૂત પુદ્ગલ પરિણામ પણ સુરસ પરિણામઅને દુરસપરિણામના ભેદથી એ પ્રકારના છે. એજ પ્રમાણે સ્પન ઈન્દ્રિયના વિષયભૂત પુદ્ગલ પરિણામ પણ સુસ્પ થાય છે. ચક્ષુ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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