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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.१०९ इन्द्रियपुद्गलपरिणामनिरूपणम् ९२५ खलु भदन्त ! सर्वे प्राणा द्वीन्द्रियादयः सर्वे भूतास्तरवः सर्वे जीवाः पश्चेन्द्रियाः सर्वे सत्त्वाः पृथिवीकायिकतयाऽप्तेजो वायुवनस्पतित्रसकायिकतया उत्पन्नपूर्वाः किम् ? भगवानाह-'हंता गोयमा! असइ अदुवा अणंतखुत्तो' हंत गौतम ! असकृत् अनेकवारम् उत्पन्न पूर्वाः, अथवा-अनन्तकृत्वः । सर्वेषामपि सांव्यावहारिकराश्यन्तपाति सर्वजीवानां सर्वस्थानेषु प्रायोऽनन्तश उत्पादसम्भवात् इति सू०॥१०८॥ चतुर्थप्रतिपपत्तौ-इन्द्रियपुद्गलपरिणाममाह मूलम्-कई विहेणं भंते ! इंदियविसए पोग्गलपरिणामे पन्नत्ते ? गोयमा ! पंचविहे इंदियविसए पोग्गलपरिणामे पन्नत्ते, तं जहा-सोइंदियविसए जाव फासिंदियविसए । सोइंदियविसएणं भंते ! पोग्गलपरिणामे कइविहे पन्नत्ते ? गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते तं जहा-सुब्भिसद्दपरिणामे य दुब्भिसद्दपरिणामे य एवं चक्खिदिय विसयादिए हि वि सुरुवपरिणामे य सव्वसत्ता पुढविकाइयत्ताए जाव तसकाइयत्ताए उववण्णपुव्वा' हे भदन्त ! द्वीप समुद्रों में क्या समस्त प्राणी, समस्त भूत, समस्त जीव, और समस्त सत्त्व क्या पृथिवीकायिक रूप से यावत् त्रसकायिक रूप से उत्पन्न हो चुके हैं क्या ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता, गोयमा असइ अदुवा अणंतखुत्तो' हां गौतम ! द्वीप समुद्रों में समस्त प्राणी, समस्त भूत, समस्त जीव और समस्त सत्त्व अनेक वार अथवा अनन्तवार उत्पन्न हो चुके हैं। क्योंकि व्यावहारिक राशि के अन्तर्गत जीवों का उत्पात प्रायः सर्व स्थानों में हो चुका कहा गया हैं ॥१०८॥ इस तरह से द्वीप समुद्र वक्तव्यता समाप्त हुई। सव्वजीवा सव्वसत्ता पुढविकाइयत्ताए जाव तसकाइयत्ताए उववण्णपुव्वा' હે ભગવન દ્વીપ સમુદ્રોમાં શું સઘળા પ્રાણી, સઘળાભૂતે, સઘળા છે, અને સઘળા સ પૃથ્વીકાયિક પણુથી યાવત્ ત્રસકાયિકપણાથી उत्पन्न २५ यु४या छ ? २मा प्रश्नन। उत्तरमा प्रमुश्री ३ छ -'हंता गोयमा ! असइ अदुवा अणंत खुत्तो' । गौतम! द्वीप समुद्वामा सघा प्राणी सघणा ભૂતે સઘળા છે, અને સઘળા સો અનેકવાર અથવા અનંતાવાર ઉત્પન્ન થઈ ચૂકેલ છે. કેમકે–વ્યાવહારિક રાશિની અંદર જીવની ઉત્પત્તિ પ્રાયઃ બધાજ સ્થાનમાં થઈ ગયેલ છે તેમ કહેલ છે. જે સૂ. ૧૦૮ છે જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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