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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.१०६ जम्बूद्वीपादयः नाम्ना निर्दिश्यन्ते ९०९ दिग्धं रजोभिराकीर्ण लिन्द-शैवालादि रहितचिरकालसंचितजलवत् लवणयुतंकटुकम् अतएवाऽपेयम् (केषाम्) बहुसंख्यकद्विपदचतुष्पदमृगपशुपक्षिसरीसृपाणां कृते, (नहि सर्वेषां कृतेऽपेयं, केषांचित्पेयमपि ते के इत्याह-) तज्जातास्तद्योनिका ये तांस्त्यक्त्वाऽन्यसत्त्वाऽन्यसत्त्वानां कृतेऽपेयम् इति । 'कालोयस्स णं भंते ! समुदस्स उदए केरिसए अस्साए णं पन्नते ? गोयमा ! आसले पेसले मांसले कालए मासरासिवण्णाभे पगईए उदगरसेणं पन्नत्ते' हे भदन्त ! कालोदसमुद्रस्योदकं कीदृशं खलु-आस्वादेन प्रज्ञप्त ? भगवानाह-हे गौतम ! आस्वाद्यं पेशलं-मनोज्ञं मांसलं परिपुष्टम्, कालं-कृष्णम्, माषराशिवर्णाभम् माषराशिनामतिकृष्णाऽऽभया व्याप्तं प्रकृत्याऽकृत्रिमर सेन प्रज्ञप्तम् इति । 'पुक्खरोदगस्स णं भंते ! समुदस्स उदए केरिसए पन्नत्ते ? गोयमा ! अच्छे जच्चे तणुए फालियवण्णाभे पगईए उदगरसेणं पन्नत्ते' हे भदन्त ! पुष्करोदकसमुद्रस्य खलु है-मिश्रित-है लिन्द-शैवाल आदि से रहित चिरकाल से संचित हुए जल के जैसा है खारा है कटुक है अतएव बहुसंख्यक द्विपद, चतुष्पद, मृग पशु पक्षी एवं सरीसृपों के लिये पीने योग्य नहीं है किन्तु उसी जल में उत्पन्न हुए जीवों के लिये, उसी में रहने वाले जीवों के लिये और उसी में संवर्धित हुए जीवों के लिये अपेय नहीं है उनके लिये पीने योग्य है 'कालोदस्स णं भंते !समुदस्स उदए केरिसए अस्साएणं पन्नत्ते' हे भदन्त ! कालोदसमुद्र का जल स्वाद में कैसा है ? 'गोयमा ! आसले पेसले मांसले कालए, मासरासिवण्णाभे, पगतीए उद्गरसेणं पण्णत्ते' हे गौतम ! कालोद समुद्र का जल अपने अकृतिम रस से अस्वाद्य है, पेशल मनोज्ञ है-मांसल-परिपुष्ट है कृष्ण-काला है एवं जैसी उदकराशि की कृष्ण कान्ति होती है उस के जैसी कान्ति से युक्त ઘણા સમયથી સંગ્રહ થયેલ જલના જેવું છે, ખારૂં છે, કડવું છે, તેથી જ તેમાં રહેનારા ઘણા દ્વિપદ ચતુપદ, મૃગ, પશુ પક્ષી એવં સરીસૃપેન્સ ને પીવા લાયક તે જ હોતું નથી. પરંતુ એ જ જલમાં ઉત્પન્ન થયેલા છે માટે તેમાંજ રહેવાવાળા છ માટે અને તેમાં જ વધેલા–પાયેલા भाट अपेय नथी. तेभने तो मे ८ पी4n साय४ छ. 'कालोदम्स णं भंते समुहस्स उदए केवइए अस्साएणं पण्णत्ते' लावन् सो समुद्रनु स स्वाहा छ ? 'गोयमा आसले पेसले मांसले कालए मासरासि वण्णाभे पगत्तीए उदगरसेणं पण्णत्ते' हे गौतम ! सो समुद्रनु र पाताना स्वाभावि अर्थात અકૃત્રિમ રસથી આસ્વાદ્ય છે. પેશલ છે. મનેણ છે. પરિપુષ્ટ છે. કૃષ્ણનામ કાળે છે. અને ઉદક રાશીની કાંતી જેવી કાળી હોય છે. એવી કાળી કાંતી જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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