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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. १०२ क्षीरोदा दिद्वीपसमुद्र निरूपणम् ८३१ यावत्प्रतिरूपाः प्रज्ञप्ताः । ‘सुप्पम - महप्पभा य दो देवा महड्डिया जाव परिवसंति 'से तेणणं गोयमा ! एवं बुच्चइ खोदवरदीवे - २' सुप्रभ - महाप्रभौ च द्वौ देवौ महर्द्धिकौ महाबलौ यावत्पल्योपमस्थितिको परिवसतः, एवञ्च क्षोदोदकवापीसुप्रभादि देवसंयोगो विलक्षणो योगस्तत्तेनार्थेन गौतम ! क्षोदवरद्वीपः - २ एवमुच्यते । 'सव्वं जोइस तं चैव जाव तारा०' सर्वं ज्योतिश्चक्रं तदेव घृतोदसमुद्रवत् यावत्तारागणकोटिकोटय । 'खोयवरं णं दीवं - खोदोदे नाम समुद्दे वट्टे वलयागार ० जाव संखेज्जाई जोयणसयपरिक्खेवेणं जाव अट्ठे' क्षोदवरं खलु द्वीपं क्षोदोदो नाम समुद्रो वृत्तो वलयाकार संस्थानसंस्थितः सर्वतः समन्ततः संपरिवेष्टय तिष्ठति स च समचक्रवालसंस्थानसंस्थितः नैव विषम चक्रवावैडूर्यमय हैं यावत् प्रतिरूप हैं 'सुप्पभ महप्पभा य दो देवा महिड्डिया जाव परिवसंति' यहां पर सुप्रभ और महाप्रभ नाम के दो महर्द्धिक आदि विशेषणों वाले देव रहते हैं इनकी एक एक पल्योपम की स्थिति है 'से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ' खोदवरदीवे २' इस कारण हे गौतम! इस द्वीप का नाम क्षोदोदकद्वीप - इक्षुरसद्वीप - ऐसा हो गया है ० 'सव्वं जोतिसं तं चैव जाव तारा० ' यहां चन्द्र से लेकर तारारूप तक के जितने भी ज्योतिषी देव हैं वे सब घृतोदक की तरह संख्यात ही हैं । 'खोयवरणं दीवं खोदोदे नाम समुद्दे वट्टे वलया ० जाव संखेज्जाई जोयण सत परिक्खेवेणं जाव अट्ठे' क्षोदवरद्वीप के चारों ओर क्षोदोदक नाम का समुद्र है - यह उस द्वीप को घेरे हुए है । यह गोल है और इसी कारण इसका आकार वलय के जैसा गोल कहा गया है । यह समचक्रवाल विष्कम्भ वाला है विषमचक्रवाल विष्कम्भ 'सुप्पम महभाय दो देवा महिइढिया जाव परिवसंति' त्यां सुप्रल अने भडा પ્રભુ એ નામના બે દેવા મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષણા વાળા રહે છે. તેઓની स्थिति मे पहयोपभनी छे. 'से तेणट्ठेणं गोयमा । एवं वुच्चइ खोदवरदीवे खोदवरदीवे' मा अरथी हे गौतम! या द्वीप' नाम 'क्षोहोह द्वीप' अर्थात् क्षु रस द्वीप से प्रभावामां आवे छे. 'सव्वं जोतिसं तं चैव जा तारा' अड़ीयां यद्रथी सहने तारा ३५ पर्यन्तना भेटला ज्योतिषिठ देवा छे, ते गधा धृतो समुद्रमा उद्या प्रमाणे संख्यात ४ छे, 'खोंयवर णं दीवं खोदोदे नाम समुदे वट्टे वलया० जाव संखेज्जाई जोयणसत परिक्खेवेणं जाव अट्ठो' क्षेोहवर द्वीपने यारे मानुमेथी क्षोहोह नामना समुद्रे घेरेस છે. એ ગાળ છે. અને તેના આકાર વલયના જેવા છે. એ સમચક્રવાલ વિષ્ણુભ વાળો છે. વિષમચક્રવાલ વિષ્ણુભવાળો નથી. તેના સમચક્રવાલ વિષ્ય ભ સંખ્યાત જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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