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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३. उ. ३. सू. १०१ पुष्करोदसमुद्रनिरूपणम् केवइयं चक्कवाल विक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं' तथैव समचक्रवालसंस्थानसंस्थितो - वरुणवरद्वीपः ? हे भदन्त ! वरुणवरद्वीपः कियच्चक्रवालविष्कम्भेण कियच्च परिक्षेपेण प्रज्ञप्तः ? समाधत्ते भगवान् - 'गोयमा !' हे गौतम ! 'संखेजाई जोयणसयसहस्सा चकवाल विक्खंभेण संखेजाई जोयणसयसहस्साई परिक्खेवेणं' संख्येययोजनशतसहस्राणि चक्रवालविष्कम्भेण परिक्षेपेण च संख्येययोजनशतसहस्राण्येव प्रज्ञप्तः । 'परमवरवेइया वणसंड वण्णओ' पद्मवरवेदिका वनषण्डाभ्यां सर्वतः समन्तात् संपरिक्षिप्तः उभयोर्वर्णनमत्र । 'दारंतरं पएसा जीवा तहेव सव्वं' चत्वारि विजयादि द्वाराणि पूर्वत आरभ्योत्तरान्तानि तेषां और वलयाकार के जैसे आकार वाला है 'तहेव समचक्कवाल संठितो' वरुणवरद्वीप समचक्रवाल वाला है 'केवतियं समचक्कवाल वि० केवइयं परिक्खेवेणं' हे भदन्त ! इसका समचक्रवाल चौडाई में कितना है ? और परिक्षेप इसका कितना है ? 'गोयमा ! संखिज्जाई जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं संखिज्जाई जोयणसयसहस्साइं परिक्खेवेणं पण्णत्ते' इसका समचक्रवाल चौडाइ में संख्यात लाख योजन का है और परिक्षेप भी इसका संख्यात लाख योजन का है 'पउमवरवेदिया वणसंड वण्णओ दारंतरं पदेसा जीवा तहेव सव्वं' इसके चारों ओर पद्ममवर वेदिका और पद्मवरवेदिका के चारों ओर एक वनपण्ड है इनका वर्णन यहां पर पूर्वोक्त जैसा ही है यहां पर पूर्व की तरह हे भदन्त ! इस द्वीप के प्रदेश वरुणवरसमुद्र को छूते हैं और वरुणवरसमुद्र के प्रदेश इस द्वीप को छूते हैं तो वे प्रदेश किसके माने जावेंगे तो इसके उत्तर में यही कहना चाहिये कि वे जो वरुणद्वीप के ८०३ 'तहेव समचकवाल संठितो' १३णुवर द्वीप समयवास वाणी छे. 'केवतिय समचक्कवाल वि० केवइयं परिक्खेवेणं' हे भगवन् तेना समय वास पडणार्धभां डेंटलो छ ? अने तेन। परिक्षेत्र डेटलो छे ? 'गोयमा ! संखिज्जाई जोयणसयसहसाईं चक्कवालविक्खंभेणं संखेज्जाई जोयणसय सहस्साइं परिक्खेबेणं पण्णत्ते' तेना સમચક્રવાલ વિષ્ણુભ પહેાળાઈમાં સ ́ખ્યાત લાખ ચેાજનનેા છે, અને પરિક્ષેપ પણ तेन। संध्यात साम योननो छे. 'पउमवरवेइया वणसंड वण्णओ दारंतरपदेसा जीवा तहेव सव्वं तेनी खारे जान्नु पद्मवर वेहि भने पद्मवर वेहिनी यारे તરફ એક વનખંડ છે. તેનુ વણુન પહેલાના વર્ણન પ્રમાણે અહીંયા સમજી લેવું. તે આ પ્રમાણે હે ભગવન્ આ દ્વીપના પ્રદેશે વરૂણવર સમુદ્રને સ્પર્શે છે. અને વરૂણવર સમુદ્રના પ્રદેશ આ દ્વીપના સ્પર્શ કરે છે. તે તે પ્રદેશ કાના કહેવાશે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં એજ કહેવું જોઇએ કે-વષ્ણુદ્વીપના જે જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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