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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३. उ. ३ सू. ९७ पुष्करद्वीपनिरूपणम् ७१७ खलु भदन्त ! द्वीपः कियता चक्रवालविष्कम्भेण कियता - कियत्समानकेन परिक्षेपेण प्रज्ञप्त इति प्रश्नः भगवानाह - हे गौतम ! षोडशयोजनशतसहस्राणि चक्रवाल विष्कम्भेण एका योजनकोटि : द्विनवति योजनशतसहस्राणि (द्विनवति लक्षाणि) एकोन नवति योजनसहस्राणि चतुर्नवतानि चतुर्नवत्यधिकानि अष्टौ शतानि परिरयः परिक्षेपो भवति पुष्करवरद्वीपस्येति । ' से णं एगाए पउमवर वेइयाए एगेण य वणसंडेण संपरिक्खित्ते दोण्हवि वण्णओ' स खलु पुष्करवरद्वीपः एकया पद्मवर वेदिकया वनषण्डेन चैकेन सर्वतः सर्वदिक्षु संपरिवेष्टित आस्ते द्वयोरपि वर्णकः द्वयोरप्यनयोर्जेबूद्वीपादाविव वर्णनं वक्तव्यम् इति । ' पुक्खरवरस्स णं भंते ! दीवस कइ दारा पन्नत्ता गोयमा ! चत्तारि दारा पन्नत्ता, तं जहा - विजएखलु भवे सयसहस्सा अउणाणउति अट्ठसया चउणउया य परिरओ पुक्खरवरस्स' हे गौतम ! पुष्करवर द्वीप का चक्रवाल विष्कम्भ १६ लाख योजन का है और परिधि इसकी १९२८९८९४ एक करोड बेरानवे लाख नव्यासी हजार आठ सौ चौरानवे योजन से कुछ अधिक है । 'से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं संपरिक्खित्ते दोह वि वण्णओ' यह पुष्करार्धद्वीप एक पद्मवर वेदिका से और एक वनपण्ड से चारों ओर से घिरा हुआ है इन दोनों का वर्णन जम्बूद्वीप आदि के प्रकरण में जैसा इनका वर्णन किया गया है वैसा ही यहां पर भी कर लेना चाहिये ' पुक्खरवरस्स णं भंते ! कति दारा पण्णत्ता' हे भदन्त ! इस पुष्करार्ध द्वीप के कितने द्वार कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता' हे गौतम ! पुष्करवर द्वीप के चार द्वार कहे गये हैं 'तं जहा' उनके नाम इस वणउतिं खलु भवे सयसहस्सा अउणाउति अट्ठसया चउणउया य परिरओ पुक्खरवरस्स' हे गौतम ! पुष्४२१२ द्वीपना यहुवास विष्णुं १६ सोण साम योन्ननो છે. અને તેની પરિધિ ૧૯૨૮૯૮૯૪ એક કરોડ ખણુ લાખ નેવાસી હજાર आईसेो याराशु योजनथी ॐ वधारे छे. 'से णं' एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेण सं परिक्खित्ते दोण्ह वि वण्णओ' पुण्डराधे द्वीप मेड पद्मवर वेहिाथी અને એક વનખંડથી ચારે ખાજુથી ઘેરાયેલ છે. આ બન્નેનું વર્ણન જ બૂઢીપ વિગેરેના પ્રકરણમાં જે પ્રમાણેનું વર્ણન પદ્મવર વેદિકા અને વન ડેનુ’ કરવામાં मायुं छे. मेन प्रभानु वर्णेन सहींयां समल सेवु' ' पुक्खरवरस्स णं भंते ! कति दारा पण्णत्ता' हे भगवन् मा पुष्पुरार्घद्वीपना डेंटला द्वारा उहेवामां साध्या छे ? या प्रश्नना उत्तरमां प्रभुश्री गौतमस्वामीने हे छे - 'गोयमा ! चत्तारि द्वारा पण्णत्ता' हे गौतम! युष्एश्वर द्वीपना यार हरवान्लो हेवामां જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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