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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.९५ धातकीखण्डनिरूपणम् ६९१ 'तेणं भंते ! किं धायइसंडे दीवे कालोए समुद्दे-ते धायइसंडे नो खलु ते कालोयसमुद्दे' हे भदन्त ! ते खलु प्रदेशाः कालोदं ये स्पृष्टाः किं कालोदकस्य धातकीखण्डद्वीपस्य वा कस्य भवेयुः इति प्रश्नः ? भगवानाह-ते धातकीखण्डद्वीपे एव परिगणिताः स्यु नों कालोदसमुद्रे । 'एवं कालोयस्स वि' एवं कालोदसमुद्रस्याऽपि प्रदेशाः स्वस्यैव न धातकीखण्डस्य स्पर्शमात्रादभवितु मन्ति व्यवहारात् । 'धायइसंडदीवे जीवा उद्दाइत्ता-कालोए समुद्दे पच्चायति ? गोयमा ! अत्थेगइया पच्चायंति अत्थेगइया नो पच्चायंति' धातकीखण्डद्वीपे ये जीवास्ते तत्रोद्वर्त्य-मृत्वा कालोदे प्रत्यायान्ति किम् ? भगवानाह-हे गौतम ! एवं विधा अपि कियन्तः सन्ति प्रत्यायान्ति ते, सन्त्येके ये न प्रत्यायान्ति, स्व स्व कर्मवशगाः किमपि व्यवसितं न पारयन्ति । एवं कालोए वि अत्थेगइया प्रदेश कालोदक समुद्र के कहे जावेंगे या धातकीखण्ड के कहे जावेंगे? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'ते धायइसंडे नो खलु ते कालोयसमुद्दे' हे गौतम ! वे प्रदेश धातकीखण्ड के ही कहलावेंगे कालोदक समुद्र के नहीं कहलावेंगे 'एवं कालोयस्स वि' इसी तरह से जो कालोदक समुद्र के प्रदेश धातकीखंडद्वीप को छुए हुए हैं वे कालोदक समुद्र के ही कहलावेंगे धातकीखण्डद्वीप के नहीं कहलावेंगे । 'धायइसंडे दीवे जीवा उद्दाइत्ता कालोए समुद्दे पच्चायंति' हे भदन्त ! धातकीखंड के जीव वहां से मरकर क्या कालोदक समुद्र में जन्म लेते हैं ? 'गोयमा! अत्थेगइया पच्चायति अत्थेगइया नो पच्चायति' हे गौतम ! कितनेक जीव धातकी खंड के मरे हुए धातकीखंड समुद्र में जन्म लेते हैं और कितनेक जीव वहां जन्म नहीं लेते दूसरी जगह कालोदक आदि में जन्म लेते हैं क्योंकि जीव अपने कर्म के अधीन हैं अतः वे स्वेच्छा કહેવાશે ? અથવા ધાતકીખંડના કહેવાશે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે 3-'ते धायइसंडे नो खलु ते कालोयसमुद्दे' गौतम ! ते प्रश। पाती दीपना पाशे तोह समुद्रन पारी नहीं एवं कालोयस्स वि' कर પ્રમાણે કાલેદ સમુદ્રના જે પ્રદેશે ધાતકીખંડ દ્વીપને સ્પર્શેલા છે, તે કાલેદ समुद्रना। ४ाये. घाती' दीपन वाश नही 'धायइसंडे दीवे जीवा उद्दाइत्ता कालोयए समुद्दे पच्चायति' हे मावन् ! यातीना त्यांची भशन सो समुद्रमा म था२१ ४२ छ है भन्यय ? 'गोयमा ! अत्थेगइया पच्चा यंति अत्थेगइया नो पञ्चायति' गौतम ! 21 वारेमापातीमा મર્યા હોય તેઓ ધાતકીખંડ સમુદ્રમાં જન્મ ધારણ કરે છે. અને કેટલાક જીવો ત્યાં જન્મ લેતાં નથી. પરંતુ તે સિવાયના કાલેદસમુદ્ર વિગેરેમાં જન્મ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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