SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 571
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवाभिगमसूत्रे आवासपव्वए पन्नत्ते' कुत्र खलु भदन्त ! गोस्तूपवेलंधर नागराजस्य गोस्तूप नामाssवास पर्वतः ः प्रज्ञप्तः, भगवानाह - 'गोयमा - जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पुरत्थिमेणं लवणं समुद्दे - बायालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं गोथूभस्स वेलंधरनागरास्स गोथूणामं आवासपव्वए पन्नत्ते' गौतम ! जम्बुद्वीपनामवति द्वीपे मन्दर पर्वतस्य पूर्वेण - पूर्वदिशि लवणसमुद्रं द्वाचसारिंशतं योजनसहस्राण्यवगाद्याऽन्तः प्रविश्य अन खलु विस्तृत विस्तरे गोस्तूपनागराजस्य गोस्तूपनामाऽवासपर्वतः प्रज्ञप्तः । ‘सत्तरस एकवीसाई जोयणसयाई उडूं उच्चत्तेणं चत्तारि तीसे जोयणसए को संच उब्वेहेणं' एकविंशानि एक विंशत्यधिकानि सप्तदशयोजनशतानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन चत्वारि योजनशतानि त्रिंशदधिकानि क्रोशमेकञ्चोद्वेधेन विस्तारवान् । ५५८ जो इस प्रकार से हैं- 'गोधूमे, उदगभासे संखे, दगसीमाए' गोस्तुभ उदकभास, शंख और दकसीमाक 'कहि णं भंते गोधूमस्स वेलंधरनागराजस गोथूभे णामं आवास पव्वए पन्नत्ते' हे भदन्त ! गोस्तृप वेलन्धर नागराज का गोस्तूप नामका आवास पर्वत कहां पर कहा गया है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोयमा ! जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं लवणसमुदं वायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थणं गोथूभस्स नागरायस्स गोथूभे णामं आवासपव्वते पण्णत्ते' हे गौतम ! जंबूद्वीप नाम के द्वीप में मन्दर पर्वत की पूर्व दिशा में लवणसमुद्र से ४२ हजार योजन आगे जाने पर गोस्तूभ वेलन्धर नागराज का गोस्तुभ नामका आवास पर्वत है ! 'सत्तरस एक्कबीसाई जोयणसयाई उडूं उच्चत्तेणं चत्तारि तीसे जोयणसए को संच उच्वेहेणं' यह पर्वत १७२१ योजन का ऊंचा है 'तं जहाँ' ? या प्रमाणे- 'गोधूमे, उद्गभासे संखे, दगसीमाए' गोस्तूल, उडावास, शौं भने सीमा 'कहि णं भंते ! गोथूभस्स वेलंधर नागराजस्स गोथूणामं आवासपव्वए पन्नत्ते' हे भगवन् गोस्तूल वेसधर नागरानी ગેાતૃભ નામના આવાસ પર્યંત કયાં આવેલ છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી उ छे - 'गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दे बायालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं गोधूमस्स नागरायस्स गोधूमे णामं आवासपव्व पण्णत्ते' हे गौतम! मंजूद्वीप नामना द्वीपमां भंहर पर्वतनी પૂર્વ દિશામાં લવણુસમુદ્રથી ૪૨ બેતાલીસ હજાર યેાજન આગળ જવાથી गोस्तूल वेस धर नागरान्नो गोस्तूल नामनो आवास पर्वत छे. 'सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसयाई उड्ढ उच्चत्तेणं चत्तारि तीसे जोयणसए कोसंच उब्वहेणं' જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy