SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२ जीवाभिगमसूत्रे भागे 'सीयाए महानईए उप्पि' शीताया महानद्या उपरिभागे 'एत्थ णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स विजए णामं दारे पन्नत्ते' अत्र खलु-अस्मिन् प्रदेशे जम्बूद्वीपस्य द्वीपस्य विजयं नाम द्वारं प्रज्ञप्तम्-कथितमिति । तत्प्रमाणमाह-'अट्ठ जोयणाई उडूं उच्चतेणं' अष्टयोजनानि ऊर्ध्वम्-उपरिभागे उच्चैस्त्वेन 'चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं' चत्वारि योजनानि विष्कंभेण 'तावइयं चेव पवेसेणं' तावत्कमेव चत्वारि योजनान्येव प्रवेशेन-प्रवेशमार्गेण, कथंभूतं विजयनामकं द्वारं तत्राह'सेए' इत्यादि, 'सेए' श्वेतम्-शुक्लवर्णयुक्तम् बाहुल्ये नाङ्करत्नमयत्वात् तथा'वरकनगथूभियाए' वरकनकस्तूपिकाकम्-वरकनकमयो स्तूपिका-शिखरं यस्य तद्वरकनकस्तूपिकाकं द्वारम्, 'ईहामियउसभतुरगनरमगरविहगवालकिन्नररुरुसरभचमरकुंजरवणलयपउमलयभत्तिचिते' ईहामृगवृषभतुरगनरमकरविहगव्यालणामं दारे पण्णत्ते' हे गौतम ! जबूद्वीप के मध्य में वर्तमानमन्दर पर्वत पूर्व दिशा में ४५ हजार योजन आगे आने पर जम्बूद्वीप के पूर्व के अन्त में एवं लवण समुद्र मे पूर्वार्ध के पश्चिम भाग में सीतामहानदी के ऊपर यहां पर जम्बूद्वीपका विजयनामका द्वार कहा गया है । अब उसका प्रमाण कहते हैं 'अट्टजोयणाई उई उच्चत्तणं चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं तावतियं चेव पवेसेणं' यह द्वार आठ योजनका ऊंचा है और चार योजन का चौडा है और चार योजन का ही इसका प्रवेश है वह द्वार किस प्रकार का है, उसका वर्णन करते है 'सेए वर कणगथूभियागे' इसका वर्ण शुक्ल है, क्यों कि अङ्करत्न का बना हुआ है, इसका शिखर श्रेष्ठ सुवर्ण का बना हुआ है 'इहामिय उसभ तुरगनर मगर विहगवालकिण्णररुरुसरभचमर कुंजरवणलय पउमलय भत्तिचित्ते' इस पर इहामृगके, वृषभके, तुरग-धोडे के-नर-मनुष्य के પના મધ્યમાં રહેલ મંદર પર્વની પૂર્વ દિશામાં ૪૫ પિસ્તાળીસ હજાર એજન આગળ જવાથી જંબુદ્વીપની પૂર્વના અન્તમાં તથા લવણુ સમુદ્રમાં પૂર્વાર્ધના પશ્ચિમ ભાગમાં સીતામહાનદીની ઉપર જંબુદ્વિપનું વિજ્ય નામનું દ્વાર કહેલ છે. डवे से हारनु प्रभार मतावामां आवे छे. 'अट्ठजोयणाई उड्ढ उच्चत्तेणं चत्तारि जोयणाई विखंभेणं तावतियं चेव पवेसेणं' मा २ मा योसननी या पा છે. અને ચાર યજન પહોળું છે. અને તેનો પ્રવેશ પણ ચાર એજનનો છે. से द्वा२ 341 प्रा२नु छ उ तनु न ४२वामां आवे छ. 'सेए वरकणग थूभियागे' तेनी २ स३४ छ. उभ ते १४ रत्नानु मनेत छ. तेनु शि५२ श्रेष्ठ सुवन अनेरा छ. 'ईहामिय उसभ तुरगनरमगर विहगवालकिन्नरहरु सरभचमरकुंजरवणलयपउमलयभत्तिचिते' तेना ५२ डा भृगना, वृषभ-हना, જીવાભિગમસૂત્રા
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy