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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.८३ लवणसमुद्रे जलवृद्धिह्रासनिरूपणम् ५३५ गच्छति, उपचयमायान्तीत्यर्थः, उपचयाऽपचयपदद्वयं पुद्गलापेक्षम्, पुद्गलानामेव चयापचयधर्मकतया प्रसिद्धत्वात् इति। तत एवं तदाकारस्य सर्व देवाऽवस्थानात्, 'सासया गं ते कुड्डा दवट्ठयाए' शाश्वताः खलु ते कुडया नित्याः प्रज्ञप्ताः द्रव्यरूपेण, 'वण्णपज वेहि० असासया' वर्णपर्यायै रसगंधस्पर्शपर्यायै रसाश्वताः अनित्याः, वर्णादीनां प्रतिक्षणं कियत्क्षणा+वाऽन्यथा भवनात् । 'तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्रिया जाव पलिओवमठिईया परिवसंति' तत्र च चतुर्यु महापातालेषु चत्वारो महद्धिका देवा यावत्पल्यपरिमाणायुष्काः परिवसन्ति 'तं जहा' तद्यथा-'काले महाकाले वेलवे पभजणे' वडवामुखे कालः केयूप महाउवचयंति' इन क्रिया पदों द्वारा प्रकट की है इस कथन से वहां पुद्गलों का उपचय और अपचय होता रहता है । क्योंकि पुद्गल ही उपचय अपचय धर्म वाले होते हैं 'सासयाणं ते कुड्डा दवट्ठयाए पण्णत्ता' ये कुडय द्रव्याथिक नय की अपेक्षा से-द्रव्य दृष्टि से-शाश्वत कहे गये हैं और 'वण्णपज्जवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहिं फासपज्जवेहिं असासया' वर्ण पर्यायों की अपेक्षा, गंध पर्यायों की अपेक्षा, रस पर्यायों की अपेक्षा, एवं स्पर्श पर्यायों की अपेक्षा अशाश्वतः अनित्य कहे गये हैं। क्योंकि वर्णादि पर्याये कुछ समय के बाद या प्रतिक्षण बदलती रहती है स्थिर-स्थायी-नहीं रहती है। 'एत्थणं चत्तारि देवा महिडिया जाव पलिओवमहिइया परिवसंति' इन चार महापाताल कलशों में महर्दिक आदि विशेषणों वाले देव रहते हैं । इनकी पल्योपम प्रमाण की आयु है । 'तं जहां इन देवों के नाम इस प्रकार से हैं-'काले, महाकाले, वेलंवे पभंजणे' काल महाकाल, बेलम्ब और प्रभंઅપચય થતો રહે છે. તેમ કહેલ છે. કેમકે પુદ્ગલે જ ઉપચય અને અપચય धर्मवालय छे. 'सासया णं ते कुड्डा दव्वट्ठयाए पण्णत्ता' से ७य द्रव्याथि नयनी अपेक्षाथी-टिथी वत ४९स छ. अने 'वण्णपज्जवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहिं फासपज्जवेहिं असासया' व पर्यायानी अपेक्षाथी पर्यायानी અપેક્ષાઓથી, રસપર્યાની અપેક્ષાથી અને સ્પર્શ પર્યાની અપેક્ષાથી અશાશ્વતઅનિત્ય કહેલા છે, કેમકે–વર્ણ વિગેરે પર્યાએ કંઈક સમય પછી ક્ષણે ક્ષણે ५४साता २७ छ. स्थि२-स्थायी रहता नथी. 'एत्थ णं चत्तारि देवा महिइढिया जाव पलिओवमद्विइया परिवसंति' मा या२ महासभा या२ मद्धि विमेरे विशेषणवा हे। २९ छ. तसानु मायुप्य पक्ष्यो५म प्रमाणनु छ. 'तं जहा थे देवाना नाम! 21 प्रमाण छ'काले; महाकाले, वेलंबे पभंजणे' ण, मह। કાલ, વેલંબ અને પ્રભંજન એ પ્રમાણે છે. વડવા મુખ પાતાલકલશમાં કાલ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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