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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.७९ पुष्करिण्याः मध्यगतप्रासादावसतंकः ४८९ तदेव प्रमाणकं सिद्धायतनम् चकारात्-सिद्धायतन-कूट-कूटेसिद्धायतन-त्रिद्वारमणिपीठिका-देवच्छन्दक-जिन प्रतिमान्तानां यथावद्वर्णनं स्थितिश्च संग्राह्यम् । 'जबूए णं सुदंसणाए दाहिणिल्लस्स भवणस्स-पुरस्थिमेणं-दाहिणपुरथिमस्स पासायवडेंसगस्स-पच्चत्थिमेणं-जंबूसुदर्शनायाः खलु भवनस्य पूर्वस्यां दक्षिण पूर्वदिशि स्थितप्रासादावतंसकस्य पश्चिमायाम्-'एत्थ णं एगे महं कूडे पन्नत्ते' एको महान्कूटः खल्वत्र प्रथितः ‘एवं दहिणस्स भवणस्स परतो-दाहिण पचत्थि मिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पुरस्थिमेणं एत्थ णं एगे महं कूडे' एवं दक्षिणभवन की दक्षिण दिशा में तथा वायव्यदिशा में स्थित जो प्रासादावतंसक है उस की उत्तर दिशा में एक विशाल कूड-कूट है 'तं चेव पमाणं सिद्धायतणं च' इस कूट के प्रमाण की वक्तव्यता जैसी पीछे कही गई है उतनी है इस कूट के ऊपर एक सिद्धायतन है। इस तरह सिद्धायतन, कूट-कूट पर सिद्धायतन, त्रिद्वार, मणिपीठिका, देवछन्द और जिनप्रतिमा, इन सव का वर्णन पूर्व में जैसा किया गया है वह सब यहां पर कर लेना चाहिये इसी तरह 'जंबूए सुदंसणाए दाहिणिल्लस्स पुरस्थिमेणं दाहिणपुरथिमस्स पासायवडेंसगस्स 'पचत्थिमेणं' जम्बूसुदर्शना के दक्षिण के भवन से पूर्व दिशा में और अग्निकोण में स्थित जो प्रासादावतंसक है उसकी पश्चिम दिशा में एत्थणं एगे महं कूडे पण्णत्ने' बहुत बडा कूट कहा गया है 'एवं दाहिणस्स भवणस्स परतो दाहिणपच्चस्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स' इसी तरह जम्बूसुदर्शना की दक्षिण दिशा में जो भवन है उसकी पश्चिम दिशा में और नैर्ऋत्य कोण के प्रासादावतंसक की साहस छे तेनी उत्तर दिशामा से विश छूट छ, 'तं चेव पमाणं सिद्धायतणं च' २१ टन प्रभानु न २ प्रमाणे पहुसांस छ सर પ્રમાણે છે. આ ફૂટની ઉપર એક સિદ્વાયતન છે. આ રીતે સિદ્વાયતન, કૂટ, ફૂટની ઉપર સિદ્ધાયતન ત્રણ દ્વારા મણિપીઠિકા દેવછંદ અને જીનપ્રતિમા આ બધાનું વર્ણન પહેલાં જેમ કરવામાં આવેલ છે. એ જ પ્રમાણે તમામ વર્ણન महाय॥ ४२ से. 'जंबूए सुदसणाए दाहिणिलरस भवणस्स पुरथिमेणं दाहिण पुरथिमस्स पासायवडे सगस्स पच्चत्थिमेणं' भूसुश नाना क्षिाना सपनथी પૂર્વ દિશામાં અને અગ્નિ ખુણામાં આવેલ જે પ્રાસાદાવતંસક છે તેની પશ્ચિમ दिशामा 'एत्थ णं एगे महं कूडे पण्णत्ते' ४ घणे ॥ भोटो फूट भाव छ. 'एवं दाहिणरस भवणस्स परतो दाहिणपच्चत्थिमिल्लस्स पासायवडे सगस्स' । પ્રમાણે જંબુસુદર્શનની દક્ષિણ દિશામાં જે ભવન છે તેની પશ્ચિમ દિશામાં जी० ६२ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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