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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.७८ जम्बूवृक्षस्य चतुःशाखावर्णनम् ४७३ जबू खलु सुदर्शना मूले द्वादशभिः पद्मवरवेदिकाभिः सर्वतः समन्तात् संपरिक्षिप्ता ताश्च खलु पमवरवेदिकाः अर्धयोजनमूर्ध्वमुच्चस्त्वेन पञ्च धनुः शतानि विष्कम्भेण वर्णकः। जम्बूसुदर्शनाऽन्येनाऽष्टशतेन जंबूनां तदर्बोच्चत्व प्रमाणमात्रेण सर्वतः समन्तात्संपरिक्षिप्ता । ताः खलु जम्ब्वाश्चत्वारि योजनानि ऊर्ध्वमुच्चैस्त्वेन क्रोशंचोवेधेन योजनं स्कन्धः क्रोशं विष्कम्भेण त्रीणि योजनानि विडिमा बहुमध्यदेशभागे चत्वारि योजनानि विष्कम्भेण सातिरेकाणि चत्वारि योजनानि सर्वांग्रेण वज्रमयमूला स एव चैत्यवृक्षवर्णकः । जंब्याः खलु पंच धणुसयाई विक्खभेणं वण्णओ' ये पद्मवर वेदिकाएं आधे योजन की ऊंची है एवं पांचसौ धनुष की चौडी है इत्यादि रूप से इनका वर्णन कर लेना चाहिये 'जंबू सुदंसणा अण्णेणं अट्ट सत्तेणं जंबूणं तदुच्चत्तप्पमाणमेत्तेण सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता' सुदर्शना जिसका दूसरा नाम है ऐसा यह जम्बूवृक्ष अन्य और १०८ जंबु के वृक्षों से कि जिनकी ऊंचाई उससे आधी है चारों ओर से घिरा हुआ है 'ताओणं जंबुओ चत्तारि जोयणाई उडूं उच्चत्तण कोसं उव्वेहेणं जोयण खंधे' ये जम्बु वृक्ष चार योजन के ऊंचे हैं। एक कोश तक ये जमीन में भीतर गढे हुए हैं एक कोश का इनका स्कन्ध है। 'कोसं विक्खंभेणं तिन्नि जोयणाई विडिमा' एक कोश की इनकी चौडाई है। तीन योजन की इनकी शाखाएं हैं 'बहुमज्झदेसभाए चत्तारि जोय. णाई विक्खंभेणं' वीच में ये चार योजन के चौडे हैं 'साइरेगाइं चत्तारि जोयणाई सव्वग्गेणं वइरामयमूला सो चेव चेतिय रुक्खवण्णओ' भेणं वण्णओ' में ५१२ हिजाम। अर्धा योनी याणी छ. मन પાંચસો ધનુષ જેટલી પહોળી છે. વિગેરે પ્રકારથી તેનું વર્ણન કરી લેવું જોઈએ. 'जंबू सुदंसणा अण्णेणं असतेणं जंबूणं तदधुच्चत्तपमाणमेत्तेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता' सुशनना नु यी नाम छ सयुमासु वृक्ष भी॥ १०८ એકસો આઠ જાંબુવૃક્ષેથી (કે જેની ઉંચાઈ તેનાથી અધેિ છે.) ચારે બાજુ ઘેરાયેલા छ. 'ताओणं जंबुओ चत्तारि जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं कोसं उब्वेहेणं जोयणखंधे' આ જંબૂવૃક્ષ ચાર એજનની ઉંચાઈવાળું છે, અને એક કસ-ગાઉ જેટલું એ भीननी -२ गये छ. तथा मे सर्नु तेनु : छ. 'कोसं विक्खंभेणं तिन्नि जोयणाई विडिमा' मे आस-पास २ ते पहा छ, अ योननी तेनी शामा छ. 'बहुमज्झदेसभाए चत्तारि जोयणाई विक्खभेणं' क्यम से या२ यौन पडणुछ. 'साइरेगाई चत्तारि जोयणाई सव्वग्गेणं वइरामयमूला सो ૨૦ રેતિયહf avorો તેનું સઘળું પ્રમાણ કંઈક વધારે ચાર એજન जी० ६० જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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