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________________ ४६६ जीवाभिगमसूत्रे फलानां भारेण नमितशाखा, उक्तश्च-'मूला वइरमया से कंदो खंधो य रिहवेरु. लियो । सोवण्णिय साहप्पसाह तहजायरूवाय ॥१॥ विडिमारययवेरुलियपत्ततवणिज्जपत्तविंटाय । पल्लवमग्गपवाला जंबूणरयया तीसे ।२॥ मूलानि वज्रमयानि स कन्दः स्कन्धश्च रिष्ट वैडूर्यकः । सौवर्णिक शाखाप्रशाखा तथा जातरूपाश्च ॥१॥ विडिमारजत वैडूर्यपत्र तपनीय पत्र घृन्तानि च । पल्लवाग्रप्रवालाः जाम्बूनदरजता स्तस्याः ॥२॥इति॥छाया।। 'सच्छाया' सती-समीचीना छाया यस्याः सा सच्छाया, 'सप्पभा'-प्रभाया-कान्त्या सह वर्तमाना सप्रभा, 'सउज्जोया-अहियं मणोणिव्वुइ करा' उद्योतेन सहिता-अधिकं मनसो निर्वृतिकराच प्रासादिका दर्शनीयाऽभिरूपा-प्रतिरूपा चाऽऽसीत् ।।सू०७७॥ फलों के भार से सदा झुकी रहती है 'सच्छाया, सप्पभा, सस्सिरीया, सउज्जोया, आहेयं मणो निव्वुइकरा, पासाइया, दरिसणिज्जा, अभिख्वा पडिरूवा' इसकी छाया वडी सुन्दर है प्रभा भी इसकी बडी सुहावनी है अतः देखने में यह वडा ही मनोरमता युक्त लगता है इससे ऐसा उद्योत निकलता है कि जैसा मणियों और रत्नों का उद्योत निकलता है इस प्रकार के उद्योत निकलने का कारण इसका मणि रत्नादि मय होना है यह अधिक से अधिक रूप में मन को शान्ति कर देता है यह प्रासादीय है दर्शनीय है अभिरूप है और प्रतिरूप है इन पदों का अर्थ-पीछे लिखा जा चुका हैइस जम्बू वृक्ष के वर्णन में इसी प्रकार की ये दो गाथाएं हैं मूला वइरमया से कंदो खंधो य रिट्टवेरुलियो । सोवणिय साहप्पसाह तह जायख्वा य । १॥ शामाया पो मने जाना माथी सही नभेसी २९ छे. 'स्वच्छा सप्पभा, सस्सिरीया सउज्जोया आहेयं मणोणिव्वुइकरा' पासाइया, दरिसणिज्जा. अभिरुवा जाव पडिरूवा' तेनी छाया धणी सु४२ छे. तेनी प्रमा ५४ घणी सोडा. મણી છે. તેથી જોવામાં તે ઘણીજ સહામણી લાગે છે. તેથી તેને એ ઉદ્યોત નીકળે છે કે જે મણિયો અને રત્નોને ઉઘાત નીકળે છે આ પ્રમાણેનો ઉદ્યોત નીકળવાનું કારણ તેનું મણિરત્નમય પણું છે. તે વધારેમાં વધારે મનને શાંતી આપે છે. તે પ્રાસાદીય છે, દર્શનીય છે અભિરૂપ છે, અને પ્રતિરૂપ છે. આ પદને અર્થ પહેલાં કહેવામાં આવી ગયેલ છે. આ જંબુવૃક્ષના વર્ણનમાં આ પ્રકારની આ બે ગાથાઓ છે'मूला वइरमया से कंदो खंदो य रिट्र वेरुलियो । सोवणिय साहप्पसाह तहजाय रूवाय ॥ १ ॥ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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