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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.७० विजयादिद्वारनिरूपणम् कवया' कवचं-तनुत्राणं, वर्म-लोहमय कुतुलिका दिरूपम् तत्संजातं यस्मिन्नितिवर्मितं, सनद्ध-शरीरे संयोजितं ततो बद्धं वर्मितं कवचं यैस्ते सन्नद्धवद्धवर्मितकवचाः 'उप्पिलियसरासणपट्टिया' उत्पीडिता शरासनानां पट्टिका धनुषां मृष्टिग्रहणस्थानं थैस्ते उत्पीडितशरासनपट्टिकाः ‘पिणद्धगेवेज विमलवरचिंधपट्टा' पिनद्धौवेयकं ग्रीवाभरणं विमलवरचिह्नपट्टश्र यैस्ते पिनद्धौवेयकविमलवरचिह्नपट्टाः पदाः 'गहियाउहप्पहरणा' गृहीतानि आयुधानि प्रहरणानि च यैस्ते गृहीतायुधप्रहरणाः 'तिणयाइ' त्रिषु आदि मध्यावसानेषु नतानि 'तिसंधीणि' त्रिषु स्थानेषु सन्धिर्येषां तानि त्रिसन्धीनि, 'वइरामया कोटिणि वज्रमयकोटीनि, 'धणूई धनूषि 'अहिगिज्झ' अधिगृह्य, 'परियाइ कंडकलावा' पर्याप्तकाण्डकलापाः विचित्र काण्डकलापयोगात् 'नीलपाणिणो' नीलः काण्डकलापः पाणौ येषां ते नीलपाणय आत्मरक्षकाः केचनाऽऽसन्, 'पीयपाणिणो' पीतपाणयः ‘रतपाणिणो रक्तचाहिए ' ते णं आयरक्खा संनद्धवद्धवम्मिकवया' थे आत्मरक्षक देव लोहमय कीलों से युक्त वख्तर को खूब कस कर पहिरे हुए थे 'उप्पीलियसरासरपट्टिया' हाथों में धनुष लिए हुए थे, 'पिणद्धगेवेजविमलवरचिंधपट्टा' गले में हार और विमल सुभट चिह्न पट से युक्त धे 'गहियाउहपहरणा' हाथों में आयुधों को लिये हुए थे 'तिणयाई तिसंघीणिवइरामयकोडिणी धणूई अभिगिज्झ पडियाइतकंडकलावा' तीन स्थानों में आदि मध्य और अन्तरूप तीन स्थानों में नत, तीन सधियों वाले, वज्रमय कोटि वाले ऐसे 'धणूई' धनुषों को लेकर जिनके पासबाण बहुत हैं अथवा बाणों से भाथा जिनका पूर्णरूप से भरा हआ है इसी से कितनेक आत्मरक्षकों के हाथ में नीले नीले वाण हैं तथा कितनेक आत्मरक्षकदेव 'पीयपाणिणो' पीले वाण जिनके हाथों में है ऐसे हैं। कितनेक आत्मरक्षकदेव 'रत्तपाणिणो रक्तवाण जिनके हाथों ममत। भूम सीने परेसा उता. 'उप्पीलिय सरासणपट्टिया' डायामा धनुष धा२९१ ४२सा उता. 'पिणद्ध गेवेज्ज विमलवरचिंधपट्टा' मा २ मने विभस सुभट बिना ५४थी युत ता. 'गहियाउहपहरणा' तेयाये पाताना हाथामा थिया। सीधे ता. 'तिणयाई तिसंधिणी वइरामयकोडिणी धणुइं अभिगिज्झपडियाइत कंडकलोवा' १ स्थानोमा माहि, मध्यम, मने मत३५ ३ સ્થાનેમાં નમેલ ત્રણ સંઘીયે વાળા અને વજમય કટિવાળા “ઘરું ધનુષ્ય ને લઈને જેની પાસે બાણે ઘણા છે; અથવા બાણથી જેઓના ભાથાઓ પૂરે પૂરા ભરેલા છે. અને તેથી જ કેટલાક આત્મરક્ષક દેવેના હાથમાં નીલ વર્ણના मा छ. तथा टसा मात्मरक्ष४ हेयो 'पीयपाणिणा' पीना माना જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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