SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.५४ वनषण्डगत वाप्यादीनां वर्णनम् २५ गत्य स्वेच्छया मज्जनं स्नानं कुर्वन्ति, 'पसाहणधरगा' प्रसाधनगृहकाणि, यत्रागत्य स्वं परंच प्रसाधयन्ति मण्डयन्तीत्यर्थः । 'गब्भधरगा' गर्भगृहकाणि-गर्भगृहाकाराणि, 'मोहणधरगा' मोहनगृहकाणि, मोहनम्-मैथुनसेवा तत्प्रसाधकानि गृहकाणि मोहनगृहकाणि वासभवनानीत्यर्थः । 'सालधरगा' शालागृहकाणि पट्टशालाप्रधानानि गृहकाणि 'जालधरगा' जालगृहकाणि जालयुक्तानि गृहकाणि 'कुसुमधरगा' कुसुमगृहकाणि-कुसुमप्रकारोपचितानि गृहकाणि । 'चित्तधरगा' चित्रगृहकाणि-चित्रप्रधानानि गृहकाणि, 'गंधव्वघरगा' गन्धर्वगृहकाणि-गीतनृत्याद्यभ्यासयोग्यानि गन्धर्वगृहकाणि, इति, 'आयंसधरगा' आदर्शगृहकाणिअपनी इच्छा के अनुसार आनन्द से ठहरते हैं अनेक प्रेक्षण गृह है यहां आकर के देव देवियां अनेक प्रकार के कौतुकों को-खेलों को देखते हैं और अनेक प्रकार के खेलों को स्वयं भी करते हैं। मजन गृह हैं-अनेक स्नानगृह है यहां पर आकर व्यन्तर देव देवियां स्वेच्छा से खूब स्नान करते हैं । 'पसाहणधरगा' अनेक प्रसाधनगृह है-यहां पर आकरके व्यन्तरदेवादिक अपने को और परको विभूषाओं से विभूषित करते है 'गम्भधरगा' अनेक गर्भगृह के आकार के धर है 'मोहणधरगा' मैथुन सेवन जहां पर किया जाय ऐसे अनेक मोहन धर हैं। इन्हें वासभवन भी कहा जाता है 'सालघरगा' अनेक पट्टशाला प्रधान धर हैं अनेक 'जालघरगा' जालयुक्त धर है। अनेक 'कुसुमधरगा' पुष्पों के समूह से युक्त गृह है। अनेक 'चित्तधरगा' चित्रों की प्रधानतावाले गृह है 'गंधव्वधरगा' गीत -नृत्य आदि अभ्यास जिन में किया जाता है ऐसे भी अनेक गंधर्व ઈચ્છા પ્રમાણે આનંદપૂર્વક ત્યાં નિવાસ કરે છે. અનેક ક્ષિણ ગૃહો છે. અહીયાં આવીને દેવ દેવિ અનેક પ્રકારના ખેલ જોવે છે અને સ્વયં પણ અનેક પ્રકારના ખેલો કરે છે. અનેક મજજન ગૃહો છે. અનેક સ્નાન ગૃહો છે. અહીયાં આવીને व्यत२ ३५ हेवियो स्वेछापूर्व ४ भूम स्नान ४२ छ. 'पसाहणधरगा' भने પ્રસાધન ગૃહો છે. અહીંયા આવીને વ્યંતર દેવ દેવિયો પિતે અને અન્યને माभूषणोथी भूप सारी शेते विभूषित ४२ छ. 'गभधरगा' मने पलडन माना घरे। छ 'मोहणधरा' या २भ-भैथुन सेवन ४२वामा सावे सेवा भने मानघ। छ. मेने पास३२ ५ वाम गावे छ. 'सालधरगा' मने ५दृश प्रधान घरे। छे. 'जालघरगा' अने: 01140 । छे. 'कुसुमधरगा' भने ध्याना समूहाथी युत गृह। छे. 'चित्तधरगा' मने २मणीय चित्राना पानतावणा गुडेछ, 'गंधवधरगा' भने गीत मने नृत्य विगेरेनामा भल्यास जी०४ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy