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________________ ३६० चन्दनेन पञ्चाङ्गुलितलेन मण्डलमालिखति मण्डलमा लिख्याऽर्चनिकां ददाति aar saग्राहगृहीत करतलप्रभ्रष्टविप्रमुक्तेन दशार्धवर्णेन कुसुमेन मुक्तपुष्प पृञ्जोपचारकलितं करोति कृत्वा धूपं ददाति दत्वा यत्रैव सिद्धायतनस्य दाक्षिणात्यं द्वारं तत्रैवोपागच्छति तत्रैवोपागम्य लोमहस्तकं गृह्णाति गृहीत्वा द्वार - वाभिम वंदिता नमसित्ता इत्यादि । टीकार्थ- वन्दना नमस्कार करके फिर वह जहां सिद्धायतन का वहुमध्य देश भाग था वहां पर गया 'उवागच्छित्ता दिव्वाए उद्गधाराए अब्भुक्खड़' वहां जाकर उसने दिव्य उदक धारा से उसे सींचा 'अत्ता सरसेन गोसीसचंदणेणं पंचगुलितलेणं मंडलं आलिहइ' सींच कर फिर उसने वहां सरस गोशीर्ष चन्दन से हाथों को लिप्त करके पांचों अंगुलिओं के छापे से युक्त एक मंडल लिखा 'मंडलं आलिहित्ता' मंडल लिखकर 'वच्चए दलयइ' अर्चना की 'वच्चए दलइत्ता' अर्चना करके फिर उसने 'कयग्गाहगहियकरयल पटभट्ट विप्पमुक्केणं दसवण्णेणं कुसुमेणं मुक्कपुष्फ पुंजोवयारकलियं करें ति' केश पाश को पकड़ने जैसे हाथ में से पडे हुए पुष्पों को छोडकर शेष पाँच वर्ण वाले पुष्पों का पुंज किया 'करेता धूवं दलयइ' पुष्पों का पुंज करके फिर उसने धूप जलाई 'धूवं दलइत्ता जेणेव सिद्धायतणस्स दाहिपिल्ले' धूप जलाकर फिर वह जहां पर सिद्धायतन का दक्षिण दिशा की ओर 'दारे' द्वार था 'तेणेव उवागच्छइ' वहां पर आया 'उवाग ' वंदित्ता णसित्ता' इत्यादि ટીકા –વંદના નમસ્કાર કરીને સિદ્ધાયતનના મધ્ય પ્રદેશમાં આવ્યે 'उवागच्छित्ता दिव्वाए उद्गधाराए अब्भुक्ख' त्यां न्हाने तेथे हिव्य सेवी ४ धाराथी तेनु सियन यु' 'अब्भुक्खित्ता सरसेन गोसीसचंदणेणं पंचगुलितलेणं मंडलं आलिहइ' सीयन उरीने ते पछी तेथे त्यां गोशीर्ष यहनथी હાથા પર લેપ કરીને પાંચે આંગળીયાથી યુક્ત છાપા લગાવ્યા. તે પછી એક भउस सच्यु- अर्थात् मनायु 'मंडलं आलिहित्ता' भउस जनावीने 'वच्चए दलयइ' अर्थना री ' वच्चए दलइत्ता' अर्थना रीने ते पछी तेथे 'कयग्गाहगहिय करयलपव्भट्टविप्पभुक्केण दसद्धवण्णेणं कुमुमेणं : मुक्कपुप्फोवयारकलियं 'તિ' કેશપાશને પકડવા જેવા હાથમાંથી પડેલા પુષ્પાને છેડીને બાકીના यांयवर्णं वाजा पुष्पोनो ढगलो जनाव्यो 'करेता धूवं दलयइ' पुष्योनो ढगसेो जनावीने ते पछी तेथे त्यां धूप ये 'धूवं दलइत्ता जेणेव सिद्धायतणस्स दाहि जिल्ले' धूप सजगावीने ते पछी ते न्यां सिद्धायतननी दक्षिण जानुनु' 'दारे' જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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