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________________ ३५६ जीवाभिगमसूत्रे सप्ताऽष्टौ पदान्यपमृत्य, 'वामं जाणुं अंचेइ'-वामं जानु मश्चति उत्पाटयति, 'अंचित्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि णिवाडेइ'-अञ्चयित्वा दक्षिणं जानुं धरणितले -भूमौ निपातयति, 'तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि णिवाडेइ'-त्रिः कृत्वो वारत्रयं भूमौ मस्तकं निपातयति नमयति, 'धरणितलंसि नमित्ता ईसिं पच्चुण्णमइ' भूमौशिरो नमयित्वा ईपत्-प्रत्युन्नमयति, 'पच्वुग्णमित्ता कडयतुडियर्थभियाओ भुयाओ पडि साहरति'-ईषत्प्रत्युन्नमय्य कटकत्रुटित स्तंभितौ भुजौ प्रतिसंहरति-सङ्कोचयति, 'पडिसाहरेत्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटूटु' एवं वयासी'भुजौ-संहृत्य करतलपरिगृहीतं शिरसाव मस्तकेऽञ्जलिं निधाय-एवं वक्ष्यमाणं वचोऽवादीत्-'नमोत्थुणं अरिहंताणं' नमोऽतु-अर्हद्भयः, 'भगवंताणं जाव सिद्धिपयाई ओसरई' स्तुति करके फिर वह सात आठ पैर आगे सरक गया और सरक कर आगे जाकर 'वामं जाणु अंचेइ' उसने अपनी बाई जानु को पैर को ऊपर उठाया 'अंचित्ता दाहिणं जाणु धरणितलंसि णिवाडेइ' और उठाकर दाहिनी जानु युक्त पैर को जमीन पर रखा फिर उसने 'तिक्खुतो मुद्धाणं धरणितलंसि णिवाडेइ' अपने मस्तक को तीन बार जमीन पर झुकाया-नमाया 'धरणि तलंसि नमित्ता' मस्तक को तीन बार जमीन पर नमाकर फिर वह 'इसिपच्चुण्णमह' कुछ ऊंचा उठा ‘पच्चुण्णमित्ता' कुछ ऊंचा उठकर 'कडयतुडिय थंभियाओ भुयाओ पडिसाहरइ' फिर उसने अपनी कटक और त्रुटित से स्तभित दोनों भुजाओं को पसारा 'पडिसाहरिता करतलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी' पसार कर उनकी अंजली बनाई और उसे मस्तक पर धुमाया फिर वह इस प्रकार से कहने लगा ડગલા આગળ ખસી ગયા. અને એ પ્રમાણે ખસી જઈને જરા આગળ જઈને 'वाम जाणु अंचेइ' तेणे पोताना मी पाणुन तनु ने पानी ५२ ५वी 'अंचित्ता दाहिणं जाणु धरणितलंसि णिवाडेइ' मने मेरीत वीन भए। ननु ने ५थी नीये मीन५२ २१च्यो. ते पछी तेणे 'तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि णिवाडेइ' पाताना मस्त नेत्रगुवा२ मीन त२६ नभाव्यु 'धरणितल सि नमित्ता' भस्त४ने वार ०४मीन ५२ नमावीन ते ५छी ते 'इसि पच्चुण्णमइ' ४४ अन्याययो 'पच्चुण्णमित्ता' ४४४ थे। यधने 'कडय तुडिय थंभियाओ भुयाओ पडिसाहरइ' ते पछी तेथे पोतानी ४४४ भने त्रुटित थी स्तमित मेवी पन्ने मुजमा न ३ावी. 'पडिसाहरित्ता करतलपरिग्गहिय सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी' डाय पीने तेनी २iral सनावी मने तेने पोताना भस्त४ ५२ ३२वी तेपछी ते २॥ प्रमाणे ४१॥ साया, 'णमोत्थु णं' अरिहंताणं જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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