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________________ २७७ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.६५ विजयदेवाभिषेकवर्णनम् २७७ आभियोगिका देवा आदेश श्रवणानन्तरमेव 'सामाणिय परिसोववण्णेहिं एवं वुत्ता समाणा' सामानिक पर्षदुपपन्नकैराज्ञप्ताः सन्तः 'हट्टतुट्ट जाव हियया' हृष्टतुष्टमानन्दिताः प्रतिमनसो हर्षविसर्पद्धृदयाः, 'करयलपरिग्गहियं' करतलपरिगृहीतम् 'सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु' शिरसावर्त मस्तकेऽञ्जलिं कृत्वा 'एवं देवा तहेत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुगंति, एवम् , यथैव युष्माभिरादिष्टः तथैव कुर्मः इत्थं विनयेन सामानिकानामाज्ञावचनं प्रतिशृण्वन्ति, 'पडिमुणित्ता उत्तरपुरस्थिमं दिसीभागं अवकमंति' प्रतिश्रुत्य सामानिकानां मनोभिप्रायसूचक वचनमुत्तरपूर्वयोरन्तराले दिक्शूलादि दोषवर्जितत्वात् आदेयवस्त्वाधारत्वाच्च प्रथम महरिहं विपुलं इंदाभिसेयं उवढेह' विजयदेव को इन्द्रासन पर अभिषेक करने के लिये महान् अर्थवाली वेश कीमती विस्तृत ऐसी अभिषेक की सामग्री उपस्थित करो 'तएणं ते आभियोगिया देवा' तव उन अभियोगिक देवों ने 'सामाणियपरिसोववन्नेहिं एवं वुत्ता स माणा' जो कि सामानिकदेवों द्वारा इस प्रकार से आदेशित कियेगये थे 'हट्टतुट्ट जाव हियया' और उपदेश सुनकर-जो हृष्ट एवं तुष्ट हुए थे। और जिनका हृदय आनन्द के वशवर्ती होकर विशेषरूप से उछल रहा था-'करयरलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु' दोनों हाथ जोडकर अंजलिके रूप में उन्हें माथे पर धुमाया और धुमाकर 'एवं देवा तहत्ति' हे देवों जैसा आप कहते हैं-हमें आपकी आज्ञा प्रमाण है' इस प्रकार 'आणाए' उनकी आज्ञा के "विणएणं वयणं पडिसुणेति' वचनों को बडी ही विनय के साथ स्वीकार करलिया 'पडिરે વિજય દેવનો ઈદ્રાસન પર અભિષેક કરવા માટે મહાન અર્થ યુક્ત વેશ કીમતી અને વિસ્તાર વાળી અભિષેક માટેની સામગ્રી લાવીને અહીં હાજર ४२. 'तएणं ते आभियोगिया देवा' ते ५छी से मालियो हेवामे 'सामाणिय परिसोववन्नेहिं' एवं वुत्ता समाणा या सामानि हेवे। ॥२॥ ५२ प्रमाणे माहेश ४२।येस। उता तसा 'हद्वतुटु जाव हियया' मने ७५३ समजाने हेमा હૃષ્ટ અને તુષ્ટ થયા હતા અને જેએનું હૃદય આનંદ વશવતી બનીને विशेष प्राथी छजी २युं तु 'करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि જ બન્ને હાથ જોડીને અંજલી કરીને તેણે એ અંજલીને પિતાના મસ્તક ५२ १२वी मने से प्रमाण माथा ५२ ३२वीने 'एवं देवा तहत्ति' होम तभी है। छ। अर्थात् समाने मापनी माज्ञा मान्य छे. २॥ प्रमाणे 'आणाए। मेमनी माशाना 'विणएणं वयणं सुऐति' वयनाने घ४ विनय पूर्व स्वारी alil 'पडिसुणित्ता' स्वी४.२ ४ीन ते ५४ी तो उत्तरपुरस्थिमं दिसीभार्ग' જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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