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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३. उ. ३ सू. ५४ वनषण्डगत वाप्यादीनां वर्णनम् 9 ष्टानीति नानामणिमयस्तम्भेषु उपनिविष्टसन्निविष्टानि, 'विविहमुत्तरोवड़या' विविधमुक्तान्तरोपचितानि विविधा - विविधविच्छित्तिकलितामुक्ता-मुक्ताफलानि अन्तरा शब्दोऽत्र वीप्सामपेक्षते तेन अन्तरेति अन्तरा२ मध्ये २ उपचिता आरोपिता यत्र तानि विविधमुक्तान्तरोपचितानि, 'विविधतारारूवोचिया' विविधतारारूपोपचितानि विविधेरने कप्रकारकैस्तारारूपैरुपचितानि तोरणेषु शोभातिशयार्थ तारका बद्धयन्ते इति लोकप्रसिद्धिरिति । ' ईहा मियउ सभतुर गणरमगर विहगवालग किण्णररुरुसरभचमरकुंजरवणलय पउमलयभत्तिचित्ता' ईहामृगवृषभतुरंग नरमरविहगव्यालकिन्नररुरुसरभ कुञ्जरवनलता पद्मलताभक्तिचित्राणि, तत्र ईहा मृगादि पद्मलतान्तानां भक्त्या - विच्छिच्या चित्र-विचित्रमालेखो येषु तानि तथा, तथा - 'खंभुग्गयवइर वे इयापरिगयाभिरामा' स्तम्भोगतवत्र वेदिकापरिगताभिरामाणि स्तम्भोगताभिः स्तम्भोपरिवर्त्तिनीभिर्वज्ररत्नमयीभिर्वेदिकाभिः परिगतानि सन्ति यानि अभिरामाणि - सुन्दराणि तानि तथा, तथा - 'विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ताविव विद्याधरयमलयुगल यन्त्रयुक्तानीव, विद्याधरयोर्यदयमलंस्थान पर निविष्ट है 'विविह मुत्ततरोवइया' इनमें अनेक प्रकार की रचानाओं से युक्त बीच बीच में मुक्तामणिलगे हुए है। 'विविह तारारूवोवचिया' विविध अनेक प्रकार के तारारूपों से ये तोरण उपचित - खचित- है शोभा के निमित्त तोरणों में तारकाएं लगाई जाती है यह बात लोक मे भी देखी जाती है 'इहामिय उसम - तुरग - णर-मगर - विहग-वालग - किण्णर - रुरु - सरभ- चमर कुंजर वणलय - पउमलयभत्तिचित्ता' ईहामृग - वृक- वृषभ वैल-तुरग-धोड़ा नर-मनुष्य, मकर - विहग - पक्षी - व्याल- श्वापद - भुजग, किन्नर, रुरु, मृग, सरभ-अष्टा पद कुञ्जर हाथी, वनलता एवं पद्मलता इन सब के उन तोरणों में चित्र बने हुये है 'खंभुग्गयवइरवेड्या परिगयाभिरामा' इन तोरणों के स्तम्भों के ऊपर वज्रमयीवेदिकाएं है इस कारण ये तोरण बहुत ही रथनाभोथी युक्त पथमां वथमां मोतियो सागेसा छे. 'विविह तारारूवोवचिया' અનેક પ્રકારના તારા રૂપાથી એ તારણા રચેલા છે. શેાભાને માટે તારણેામાં ताराम साववामां आवे छे. आ मामत बोड प्रसिद्ध छे. 'इहामिय उसम तुर गणरमगरविहगवा लगकिण्णर रुरु सरभ चमर कुंजर वणलय पउमलय भत्तिचित्ता' हामृग 93 वृषल ખળદ તુરગ ઘેાડા ભુજગ સર્પ કિન્નર રૂરૂ ભૃગ સરભ અષ્ટાપદ કુંજર હાથી વનલતા અને પદ્મલતા આ બધાના એ તારણામાં यित्रो चित्रेमा - मनावेला छे. 'खंभुग्गय वइरवेइया परिगयाभिरामा' या तोरशीना થાંભલા ઉપર વજામયી વેદિકા છે. તેથી એ તારણા ઘણાજ સુંદર લાગે જીવાભિગમસૂત્ર १५
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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