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________________ २३८ जीवाभिगमसूत्रे श्रीवत्साः 'कणगमयाओ बाहाओ'-कनकमया बाहाः 'कणगमईओ पासाओ' कनकमयाः पाश्र्वाः 'कनगमईओ गीवाओ' कनकमय्यो ग्रीवाः 'रिद्वामए मंसु' 'रिष्टरत्नमयं मांसम् 'सिलप्पवालमया ओट्ठा' शिलाप्रवालमया ओष्ठाः विद्रमविनिर्मिता इतियावत्, ‘फलिहामया दंता'-स्फटिकरत्नमयाः दन्ताः, 'तवणिज्जमईओ जीहाओ' तपनीयमया जिह्वाः 'तवणिजमया तालुया' तपनीयमयानि तालुकानि, 'कणगमईओ णासाओ' कनकमय्यो नासिकाः 'अंतो लोहितक्खपरिसेयाओ' अन्तमध्ये लोहिताक्षरत्नप्रतिषेकाः, 'अंकमयाई अच्छिणी अंतो लोहितक्ख परिसेयाई अन्तर्मध्यप्रदेशे लोहिताक्षरत्नप्रतिषेकाणि-अङ्करत्नमयानि-अक्षीणि, मयाश्चुकाः' तपे हुए सुवर्ण के इनके चूचुक हैं-स्तन के अग्रभाग है। 'तपनीयमयाः श्रीवत्सा' तप्त सुवर्ण के इनके श्रीवत्स हैं-छाती के ऊपर रहे हुए चिन्ह विशेष हैं । 'कणगमया वाहाओ कणगामइओ पासाओ' सुवर्णमय इनके बाह हैं सुवर्णमय इनके दोनों पार्श्वभाग हैं । 'कनकमय्यो ग्रीवा' सुवर्णमय इनकी ग्रीवाएं गर्दने हैं। 'रिष्टमयंमांसम्' रिष्टमय इनका मांस है 'शिलाप्रवालमया ओष्ठा' इनके ओष्ठशिलाप्रवाल-मूगा के हैं । 'स्फटिकमया दन्ता' इनके दांत स्फटिकमणि के बने हुए हैं। 'तपनीयमय्यो जिहा' इनकी जीभें तपनीय सुवर्ण की बनी हुइ हैं । 'तपनीयमयानि तालुकानि' तालुभाग इनका तपनीय स्वर्ण का बना हुआ है 'कनकमय्यो नासिकाः' इनकी नासिकाएं सुवर्ण की बनी हुई है 'अन्तर्लोहिताक्षप्रतिषकाः' नाक के भीतर की रेखाएं लोहिताक्षरत्नकी बनी हुई हैं 'अङ्कमयानि अक्षीणि' अङ्करत्नकी इनकी आखें. शम (३१८) २७ २८ २त्नानी छे. 'तपनीयमयाश्चूचुकाः' तपेसा सोनाना तेना पियु। छे. अर्थात् स्तननी मला छे. 'तपनीयमया ! श्रीवत्साः' तपसा सोनाना तेन। श्रीवत्स छातीनी ७५२ २२स चिन्ह विशेष छे. 'कणगमया वाहाओ कणगामइओ पासाओ' सुवा भय तेना माहु-डायो छ भने सुवर्ष भय तेना भन्ने ५७माया छ. 'कनकमय्यो ग्रीवा' तेनी श्रीवा- सुप भय छे. 'रिष्टमयं मांसम्' टिमय तेनु मांस छ. 'शिलाप्रवालमया ओष्टा, तेनामा शिक्षा प्रवास भूगाना छे. 'स्फटिकमया दन्ता' तेन त। २३८४ भनिन। मनेा छ. 'तपनीयमय्यो जिह्वा' तेनी म तपनीय सोनानी भनेर छे. 'तनीयमयानि तालुकानि' तेन। ताबुन प्रदेश तपनीय सुवानी मनेस छ. 'कनकमय्या नासिका' तेना ना सोनाना अनेसा छे. 'अन्त लोहिताक्ष प्रतिषेका' नानी ५४२नी २मा सोडिताक्ष २त्ननी मनेस छ. 'अङ्कमयानि अक्षीणि' तेनी मा म २त्ननी मनेस छे. 'अन्तलोहिताक्षप्रतिषेकाणि' मामानी म४२नी २मा सोडितक्ष २त्ननी मनेस જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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