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________________ २२४ जीवाभिगमसूत्रे एगे महं सीहासणे पनत्ते'-अत्र मणिपीठिकोपरि खल्वेकं महत्सिंहासनं प्रज्ञप्तम्, 'सीहासण वण्णओ' (अत्र सिंहासनवर्णनं पूर्ववत्) 'तस्सणं माणवगस्स चेइय खंभस्स पचत्थिमेणं'-माणवकनाम्नस्तस्य चैत्यस्तंभस्य पश्चिमायाम्, 'एत्थ - एगा महं मणिपेढिया पन्नत्ता'-अत्र खल्वेका महती मणिपीठिका प्रज्ञप्ता। 'सा खलु मणिपीठिका-'जोयणं आयामविक्खंभेणं'-योजनमेकं यावद् दैर्घ्य विस्ताराभ्याम्, 'अद्ध जोयणं बाहल्लेणं' धनुःसहस्रं यावद्भवति बाहल्येन (इयश्च) 'सव्व मणिमई अच्छा'-सर्वात्मना मणिमयी अच्छा श्लक्ष्णा घृष्टा मृष्टा निर्मला नीरजस्का निष्पङ्का-निष्कण्टकच्छाया-सप्रभा सोयोता प्रासादीया दर्शनीया ऽभिरूपा प्रतिरूपेति । 'तीसेणं मणिपेढियाए उप्पि' तस्याश्च मणिपीठिकाया ऊर्ध्वभागे, 'एत्थणं एगे महं देवसयणिज्जे पन्नत्ते' महदत्रैकं देवशयनीयं मणिपीमणिपेढियाए उम्पि' इस मणिपीठिका के ऊपर 'एगे महं सीहासणे पन्नत्ते' एक विशाल सिंहासनरखा है। 'सीहासणवण्णओ' यहां सिंहासन का वर्णन पहिले जैसा वर्णन किया गया है, वैसा ही करलेना चाहिये। 'तस्स णं माणवगस्स चेइयखंभस्स पच्चत्थिमेणं' उस माणवक चैत्यस्तम्भ की पश्चिमदिशा में एस्थ णं एगा महं मणिपेढिया पन्नत्ता' एक विशालमणिपीठिका है। वह मणिपीठिका 'जोयणं आयामविक्खभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं' एक योजन की लम्बी चौडी है। और आधे योजन की मोटी है यह मणिपीठिका 'सव्वमणिमई अच्छा' सर्वरूप से मणियों की है और आकाश एवं स्फटिकमणियों के जैसी निर्मल है यहां-इलक्षणा घृष्टा, मृष्टा, निर्मला आदि पूर्वोक्तपदों को ग्रहण कर लेना चाहिये । 'तेसिणं मणिपेढियाणं उम्पि' उन मणिपीठिकाओं के उपर 'एत्थणं एगे महं देवसयणिज्जे पन्नत्ते' एक विशाल willisitी 3५२ 'एगं महं सीहासणे पण्णत्ते' पिस सिंहासन पे छे. 'सीहासणवण्णओ' मडिया सिडासननु वा न पास भ ४२वामां आवे छे ते प्रमाणे ४श से. 'तस्स णं माणवगस्स चेइयग्वंभस्स पच्चत्थिमेणं' से मार चैत्यस्त मनी पश्चिमहिमा 'एत्थ णं एगा महं मणिपेढिया पण्णत्ता में विशाभलिपीछे ते मणिपा.81 'जोयणं आयामविक्खंभेणं अद्धजोयणं बाहल्लेणं' એક જનની લાંબી પહોળી છે. અને અર્ધા એજનના વિસ્તારવાળી છે. मा भलिपी31 'सबमणिमई अच्छा' सर्व रे भणियोनी छे. सन २४॥२॥ सन २३८४ भणियो नापी नि छ. मिडियां लक्ष्णा, घृष्टा, मृष्टा, निर्मला, विगैरे पूर्वात पहोने अडए४२४ छ, 'तेसिणं मणिपेढियाणं उप्पि' से भलिपी आसानी ५२ 'एत्थ णं एगे महं देवसयणिज्जे पण्णत्ते' विहेव જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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