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________________ २१४ जीवाभिगमसूत्रे 'बहवे वेरुलियामईओ धूपघटियाओ पन्नताओ'-बढयो वैडूर्यमय्यः धूपघटिकाः प्रज्ञप्ता, कथिताः 'ताओणं धूवघडियाओ' ताश्च खलु धूपघटिकाः, कालागुरुपवरकुंदरुक्कतुरुक्कजाव घाणमणोणिव्बुइकरेणं गंधेणं'-कालागुरुप्रवरकुन्दरुष्कतुरु कधूपमघमघायमानघ्राणमनोनिवृतिकरणगन्धेन, 'सव्वतो समंता आपूरेमाणीओ चिटंति'-सर्वतः सर्वासु द्विक्षु समन्ततः सामस्त्येनाऽऽपूर्यमाणास्तिष्ठन्ति, । 'अत्र फलक तोरण नागदन्तधूपघटिकावर्णनं विजयद्वारवदेव कर्तव्यम्) विस्तरभयान्नेह पुनः प्रपञ्च्यते ॥ सभाएणं सुहम्माए'-सभायाः खलु सुधर्मायाः, 'अंतो बहूसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते'-अन्तर्मध्यभागे बहुसमरमणियो भूमिभागः प्रज्ञप्तः, 'जाव मणीणं फास:'-यावन्मणीनां स्पर्शः, विनयद्वारवदेवाऽत्रापि भूमिभाग वर्णनं मणिस्पर्शान्त यावत्कर्तव्यम् । 'उल्लोया पउमभत्तिचित्ता जाव सव्व तवहुए छींके हैं 'तेसिणं रययायएसु सिक्कएसु' उन चांदी के सीकों पर 'बहवे वेरुलियामईओ धूवघटियाओ पन्नत्ताओ' अनेक वैडूर्यरत्नके बने हुए धूप घट रखे हुए है । 'ताओ णं धूवघटियाओ' ये धूपघट 'कालागुरुपवर कुंदरुकतुरुक्क जाव घाणमणो णिव्वुइकरेणं गंधेणं' कालागुरु की प्रवर कुन्दरु की और तुरुष्क-लोभान की प्राण और मनको आनन्दित करने वाली गंध से 'सव्वओ समंता आपूरेमाणीओ चिट्ठति' चारों ओर से खूब भरे हुए है। यहां पर फलक, तोरण नागदन्त और धूप घटिकाओं का वर्णन विजयद्वार के वर्णन के जैसे ही करलेना चाहिये यहां 'सभाएणं सुहम्माए' सुधर्मा सभा के 'अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' भीतर में जो भूमिभाग है वह बहु समरमणीय है । 'जाव मणीणं फासो' यहां मणिस्पर्श तक को विजयद्वार के जैसा ही भूमि भाग का वर्णन कर लेना चाहिये 'उल्लोया पउम'बहवे रययामया सिक्कगा पन्नत्ता' याहीन मनेसामने सीमा छ. 'तेसिणं रययामएसु सिक्कएसु' को यहीना सीमानी ५२ 'बहवे वेरुलियामईओ धूवघटियाओ पण्णत्ता' वैडूरत्ननी मनेर मने धूपघटिया-धूपहानीयो रामेस छ. 'ताओ णं धूवघटियाओ' से धूपघटो 'कालागुरु पवरकुंदुरुक्कतुरुक्क जाव धाणमणनिव्वुइकरेणं गंधेणं' साशु३न। प्रव२ १३नी मने तु३०४-सामानना भन भने प्राण द्रियने मान ५मावा थी 'सव्वओ समंता आपूरेमाणीओ चिट्ठति' थारे त२५थी भूम मरे। छे. ही यांस, तोरण, नागत भने ५५चाटायर्नु वर्णन ४२ से . मी 'सभाएणं सुहम्माए' सुधम समाना 'अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' मरने भूमिमा छ ते मसभरभणीय छे. 'जाव मणीणं फासो' महीया सु२ मणियोन। २५श सुधा वियाना पर्णन प्रभारी भूभिलागनु न श से नये. 'उल्लोया જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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